ट्रेन के इंतजार में मैं प्रतीक्षालय में बैठी हुई थी| रात का समय ...उस पर कड़ाके की ठंड |स्वेटर ..शाल ...गर्म बिस्तर के बाद भी हाथ-पैर सुन्न हुए जा रहे थे|तभी बाहर प्लेटफार्म से गाने की आवाज आई |मासूम गले की लोच भरी आवाज,पर गीत के बोल अश्लील -'आधी-आधी रतिया बुढऊ माँगत बाने पानी|' गीत के हर बोल के साथ लोगों का अट्टहास गूंजता था|उत्सुकता के कारण खिड़की का दरवाजा थोड़ा-सा खोलकर देखा |एक दस वर्षीय बालिका लोगों से घिरी हुई थी ||जगह-जगह से फटे ..पेबंद लगे घाघरे-चोली में बड़ों की तरह अभिनय करती वह बार-बार वही गीत गाये जा रही थी |लोग आपस में मजाक करते उससे उसी गीत की फरमाईश कर रहे थे|शायद गीत की उत्तेजना में वे इंतजार और ठंड को भूले जा रहे थे |उन्हें तो यह भी याद नहीं था कि इसी उम्र की उनकी बेटी,बहन या पोती घर में आराम से सो रही होगी और यह पेट के लिए .....|वे मगन थे ....|ऐसा मनोरंजन और कहाँ मिलता उन्हें ,वह भी चंद पैसों में?|इससे ज्यादा पैसा तो वे पान की पीक में थूक देते हैं |
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