Tuesday, 19 March 2013

दो लघु-कथाएँ



१--
बकरीद करीब होने से मंडी में बकरों  की भरमार थी|कई तरह के बकरे थे |दुबले,भरे और तगड़े |कद में भी सबके कुछ अंतर था |लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार बकरों का मोल-भाव कर रहे थे |गरीब मुसलमानों की नजर तगड़े बकरों पर पड़ती थी ,पर मन मसोस कर रह जाते थे |कुछ बकरे तो बकरों के राजा से थे |अलग ही दीखते थे |उनके मालिक बता रहे थे कि किस तरह उनकों विशेष देखभाल कर पाला था |खाने के लिए महँगी चींजे दी थीं|सारे बकरे मिमियाँ रहे थे |किंग बकरों की आवाज सबसे तेज थी |मैं उनका चीत्कार साफ़ सुन रही थी |वे इसलिए दुखी थे कि जिन्हें वे अपने आका समझ रहे थे ,वे उन्हें मंडी बेचने के लिए लाए थे |
२-
दो सहेलियां थीं|साथ पढ़ी-लिखीं,खेलीं-कूदीं |काफी समानताएँ थीं दोनों में,पर बाद में दोनों में काफी अंतर आ गया |एक की शादी हो गई,दूसरी की नहीं हुई |जिसकी नहीं हुई ,वह दुखी थी,उदास थी |समाज की तिरछी निगाहें उस पर पड़ रही थीं,पर उसे नींद खूब आती और जाहिर है कि नींद आएगी,तो उसमें सपने भी होंगे |सपनों में एक राजकुमार होता,जो उसे प्यार करता,पर यथार्थ में यह सच नहीं था,इसलिए वह परेशान थी |परेशान शादीशुदा लड़की भी थी|उसके राजकुमार ने उसे धोखा दे दिया था |वह बड़े बंधन में थी और सारे बंधन उसके राजकुमार की वजह से थे |उसे लड़की राजकुमारी नहीं लगती थी,और नौकरानी की तरफ काम नहीं करती थी |वह नौकरी तो करती ,पर वेतन राजकुमार को देते समय रूक-रूक जाती थी |राजकुमार की सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि वह सोचती भी थी और उसे सोचने वाली स्त्री पसंद नहीं थी |दोनों सहेलियां एक दिन मिलीं और एक-दूसरे के दुःख-तकलीफ से परिचित हुईं |वे समझ नहीं पा रहीं थीं कि किसकी दशा को अच्छा कहें ?एक के पास नींद थीं,सपने थे,पर रात भर के,दिन जानलेवा था |दूसरी को ना नींद आती थी,ना सपने|दोनों ने कुछ फैसला किया और बिना किसी को खबर किए एक अनजान शहर में जा बसीं |दूसरे दिन उनके शहर में प्रचार था कि वे समलिंगी थीं,कहीं भाग गईं | 

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