16 जनवरी को गोरखपुर के ऊरुवा में
लड़की के साथ एक हादसा हुआ था | एक मानसिक रूप से विकृत लड़के ने लडकी की नाक ही
काट डाली थी |कारण यह था कि लड़का उससे
एकतरफा प्रेम करता था और उससे शादी करना चाहता था |लेकिन लड़की नहीं चाहती थी और
उसने इनकार कर
दिया और अब उसकी शादी कहीं और होने जा रही थी। मामला पुरूष सत्ता का है ,ऐसा
ज्यादातर ने कहा ,पर मनोविज्ञान के अनुसार यह मामला विशुद्ध रूप से मानसिक विकृति
का है जिसका वो लड़का शिकार था। वह आरोपी लड़का दरअसल "एग्रेसिव ओ.सी.डी.
डिसऑर्डर" नामक मानसिक विकृति से ग्रस्त था जिसे चिंता विकृति में वर्गीकृत
किया जाता है। इसमें व्यक्ति की मनोग्रस्ति आक्रामक हो जाती है और वह मनोग्रस्ति
के कारक का अधिक से अधिक नुकसान पहुँचाने की चेष्टा करता है। ऐसी बीमारी के पीछे
"नकारात्मक घरेलू माहौल, नकारात्मक
सामाजिकता, जीवन
में असफलता, संस्कारों
की कमी, अतिहठधर्मिता
आदि" कारण होते हैं जो व्यक्ति की चिंता एवं आक्रामकता को बहुत ज्यादा बढ़ा
देते हैं जिसका परिणाम हमेशा बड़ा भयानक होता है। इस विकृति के कारण व्यक्ति की
आसक्ति असंगत रूप से हिंसक स्वरुप ले लेती है। व्यक्ति का विवेक (intelligence)
लगभग समाप्त हो जाती है, उग्रता बढने लगती है, किसी ख़ास एवं अनचाहे ख्याल से वो
लगातार परेशान रहता है, शंका
- आशंका , गंदगी
एवं हरकतों के प्रति वह अतिसंवेदनशील हो जाता है। उसकी हरकतें भी बहुत हद तक असंगत
हो जाती हैं जैसे बार - बार हाथ धोना, नहाना
, साफ़
सफाई का बहुत ज्यादा ध्यान देना , किसी
पर विश्वास न होना, एक ही काम बार - बार करना, ताला बंद होने पर भी बार - बार चेक
करना आदि। वैसे राह चलते जो लोग लड़कियों या महिलाओं को मुड़ - मुड़ कर देखते हैं
या घूरते हैं वो भी ओ.सी.डी. से ग्रस्त होते हैं।
इस बीमारी से मुक्ति का एक मात्र रास्ता ग्राफोलोजी एवं ग्राफोथिरेपी (अति उन्नत एवं अत्याधुनिक मनोविज्ञान ) है जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क को समुचित अवस्था के लिए अधिगमित एवं सशक्त कर स्थापित कर दिया जाता है जिसमें मात्र 2 से 4 सप्ताह का ही समय लगता है। यह स्थाई निदान तो होता ही है साथ ही व्यक्ति मानसिक रूप काफी सशक्त भी हो जाता है तथा इसमें किसी किसी भी प्रकार की दवा का प्रयोग नहीं होता। वैसे भी किसी भी मानसिक बीमारी को दवा ठीक किया ही नहीं जा सकता उल्टे दवाओं से व्यक्ति का व्यक्तित्व बिलकुल नष्ट हो जाता है, आत्महत्या करने की प्रवृत्ति 2 गुनी बढ जाती है, व्यक्ति असामान्य रूप से बहुत हिंसक हो सकता है |यदि ऐसा कुछ होने से वो बच भी जाता है तो भी अंततः वो किसी काम का नहीं रहता|इसी कारण कुछ लोगों द्वारा मनोचिकित्सा (साईकियाट्री) को "मौत का उद्योग" भी कहा जा रहा है और अमेरिका सहित 36 विकसित देशों में इसे प्रतिबंधित करने की जबरदस्त मांग चल रही है ]
बच्चों या किसी व्यक्ति ऐसी असामान्यता दिखने पर तत्काल ग्राफोलोजी एवं ग्राफोथिरेपी के एक्सपर्ट से परामर्श करना चाहिए।
इस बीमारी से मुक्ति का एक मात्र रास्ता ग्राफोलोजी एवं ग्राफोथिरेपी (अति उन्नत एवं अत्याधुनिक मनोविज्ञान ) है जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क को समुचित अवस्था के लिए अधिगमित एवं सशक्त कर स्थापित कर दिया जाता है जिसमें मात्र 2 से 4 सप्ताह का ही समय लगता है। यह स्थाई निदान तो होता ही है साथ ही व्यक्ति मानसिक रूप काफी सशक्त भी हो जाता है तथा इसमें किसी किसी भी प्रकार की दवा का प्रयोग नहीं होता। वैसे भी किसी भी मानसिक बीमारी को दवा ठीक किया ही नहीं जा सकता उल्टे दवाओं से व्यक्ति का व्यक्तित्व बिलकुल नष्ट हो जाता है, आत्महत्या करने की प्रवृत्ति 2 गुनी बढ जाती है, व्यक्ति असामान्य रूप से बहुत हिंसक हो सकता है |यदि ऐसा कुछ होने से वो बच भी जाता है तो भी अंततः वो किसी काम का नहीं रहता|इसी कारण कुछ लोगों द्वारा मनोचिकित्सा (साईकियाट्री) को "मौत का उद्योग" भी कहा जा रहा है और अमेरिका सहित 36 विकसित देशों में इसे प्रतिबंधित करने की जबरदस्त मांग चल रही है ]
बच्चों या किसी व्यक्ति ऐसी असामान्यता दिखने पर तत्काल ग्राफोलोजी एवं ग्राफोथिरेपी के एक्सपर्ट से परामर्श करना चाहिए।
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