सपने अधूरे
,उम्मीदें अधूरी
फिर भी कहते हैं
वे
आजाद हैं हम
अनवरत और कठिन
संघर्षों की बदौलत हमें आजादी मिली ,लेकिन विसंगति यह कि आजादी अब भी अधूरे सपनों की तरह है |आजाद देश में अब भी तमाम युवाओं की उम्मीदें व
सपने अधूरे हैं |कर्तव्यों व दायित्वों के
प्रति जागरूक युवा अपने सपनों को हकीकत में बदलने की आजादी चाहते हैं |अपनी पसंद का रोजगार चुनने और मनचाही भाषा के
प्रयोग का अधिकार चाहते हैं |धर्म संप्रदाय देश और विचारों की उन तमाम सीमाओं से मुक्त होना चाहते हैं जो ‘वसुधेव कुटुंबकम’ की अवधारणा में बाधक बन पूरी दुनिया को एक होने से रोकते हैं |
आज के दौर में
सबसे जरूरी है अभिव्यक्ति की आजादी ,वह भी महज किताबी नहीं व्यावहारिक |कई स्तरों पर कुछ कह न पाने की अकुलाहट युवा मन को सालती रहती है |व्यवस्था ऐसी हो,जो न केवल हमारी बातों को ध्यान पूर्वक सुने ,बल्कि उन समस्याओं पर विचार करते हुए उसके निराकरण की समुचित व्यवस्था भी करे |युवा सपनों को उड़ान भरने के लिए जिस अनंत आकाश
की जरूरत है उसके लिए छोटी कक्षाओं से लेकर जीवन के हर पड़ाव के लिए एक बड़ी और आजाद
सोच वाले तंत्र की आवश्यकता है |
आजादी के इतने
दशकों के बाद भी लोग जाति,वर्ण ,संप्रदाय ,भाषा और बाबा आदम के जमाने की तमाम रूढ़ियों जैसी
तमाम सीमाओं के बंधन से मुक्त नहीं हो सके हैं |भारत के प्राण तो वसुधेव कुटुंबकम में बसते हैं और दुनिया तभी परिवार बन सकेगी
जब लोग और देश छोटी-छोटी सीमाओं को लांघकर करीब आने की कोशिश करें|आजादी के मायने हैं अपने ढंग से जीने ,करियर चुनने ,अपनी पसंद की भाषा बोलने के साथ –साथ अपने विचारों को किसी भी पटल पर मजबूती
से रखने का अधिकार |आजादी क्या है यह तो
समझना ही चाहिए,पर आजादी क्या नहीं है यह
समझना भी बेहद जरूरी है |आजादी को सकरात्मक अर्थ में ही लेना चाहिए |इसे कुछ भी करने का अधिकार नहीं समझना चाहिए |नाइजीरिया सीरिया इराक केन्या जैसे देशों की ओर
देखें तो समझ में आता है कि हमें प्राप्त आजादी कितनी महत्वपूर्ण है ?1947 में तो आजादी का अर्थ राजनीतिक आजादी से था ,लेकिन वर्तमान में स्वतन्त्रता का मतलब कट्टरपन
शोषण और जातीय पूर्वाग्रहों से मुक्ति है |स्वतन्त्रता के साथ जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य भी है जिंसका पालन आजादी की सुरक्षा के लिए जरूरी है |तंत्र गलत हो तो उसे गलत कहें लेकिन अपनी
कमियों का दोष भी व्यवस्था पर डालना गलत है |
बदलते परिवेश में
आजादी का अर्थ मूलभूत सुविधाओं से जोड़कर देखा जाना चाहिए |भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा तंत्र भले ही बड़ी-बड़ी
बातें करे हकीकत में सब हवाई ही नजर आता है | तंत्र और नागरिकों के बीच आपसी सामंजस्य से ही दिक्कत को दूर किया जा सकता है
|अंधेरे को हारने के लिए नए दीपक जलाना सामूहिक
ज़िम्मेदारी है|व्यक्तिगत सामाजिक राजनैतिक
हर स्तर पर आधुनिक और सकरात्मक कदम उठाने की दरकार है
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