Saturday, 10 September 2011

कुम्भीपाक नरक

चुनाव का मौसम समीप था|नाजुक -सी वे एक गरीब बस्ती में गयी |वहाँ न पानी था ,न बिजली|जगह -जगह बदबूदार नालियां और रेंगते कीड़े से लोग |सलाहकार ने उनके कान में कहा -"एक बच्चे को गोद में उठाइए ,उसकी बहती नाक पोंछ दीजिए ,बस यहाँ के सारे वोट आपके ..|"
उन्होंने बच्चे की बहती नाक को देखा |उन्हें धर्मग्रन्थों में वर्णित कुम्भीपाक नरक की याद आ गयी |वे बेहोश हो गयीं |
दूसरे दिन एक खबर अखबार की सुर्ख़ियों में था -"वे भारत के नौनिहालों की बदतर हालत न देख सकीं और दुःख से बेहोश हो गयीं |"

2 comments:

  1. एक ही सांस में आपके सभी पोस्‍ट पढ़ गया। खुले हुए दिमाग और वक्र दृष्टि से आपने बहुत शानदार प्रयास शुरू किया है। आपके ब्‍लॉग को बुकमार्क करके रख रहा हूं... उम्‍मीद है भविष्‍य में और भी बेहतरीन लेखन पढ़ने को मिलेगा...

    आपके प्रयास के लिए ढेरों शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  2. ....aur narak ki taswir nahi badli.

    ReplyDelete