तीन अधेड़ स्त्रियाँ थीं |उनमें पहली ने विवाह नहीं किया था |सफल ,आत्मनिर्भर ,अपने ढंग से जीवन जी चुकी वह स्त्री उम्र के इस ढलान पर एक बच्चे के लिए ललक रही थी ,जो जवानी में डंके की चोट पे नहीं चाहिए था उसे |बच्चे के बिना उसे अपनी सफलता बेमानी लग रही है|
दूसरी स्त्री इसी उम्र में जोड़ो के दर्द का शिकार है |बच्चे बड़े और आत्मनिर्भर हो चुके हैं |उन्हें अब माँ की जरूरत नहीं रही |माँ को ही उनकी जरूरत है ,पर वे उसे बोझ समझ रहे हैं |वह सोच रही है कि काश .बच्चों की परवरिश में अपनी प्रतिभा क उत्सर्ग नहीं किया होता ,तो वह भी आज सफल व आत्मनिर्भर होती |
तीसरी स्त्री पूरी जवानी बच्चों और नौकरी के बीच झूलती रही थी |वह हमेशा तनाव में रही |कभी सोचती -कहीं अपनी महत्वाकांक्षा में बच्चों की उपेक्षा तो नहीं कर रही ,तो कभी सोचती -बच्चों के कारण अपने पेशे के साथ बेईमानी तो नहीं कर रही| आज वह डिप्रेशन की मरीज है |
तीनों स्त्रियाँ तड़प रही हैं और मैं सोच रही हूँ |चौथा रास्ता कौन है ?
दूसरी स्त्री इसी उम्र में जोड़ो के दर्द का शिकार है |बच्चे बड़े और आत्मनिर्भर हो चुके हैं |उन्हें अब माँ की जरूरत नहीं रही |माँ को ही उनकी जरूरत है ,पर वे उसे बोझ समझ रहे हैं |वह सोच रही है कि काश .बच्चों की परवरिश में अपनी प्रतिभा क उत्सर्ग नहीं किया होता ,तो वह भी आज सफल व आत्मनिर्भर होती |
तीसरी स्त्री पूरी जवानी बच्चों और नौकरी के बीच झूलती रही थी |वह हमेशा तनाव में रही |कभी सोचती -कहीं अपनी महत्वाकांक्षा में बच्चों की उपेक्षा तो नहीं कर रही ,तो कभी सोचती -बच्चों के कारण अपने पेशे के साथ बेईमानी तो नहीं कर रही| आज वह डिप्रेशन की मरीज है |
तीनों स्त्रियाँ तड़प रही हैं और मैं सोच रही हूँ |चौथा रास्ता कौन है ?
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