Wednesday, 21 September 2011

हिसाब

वह बेचैनी से बार-बार घड़ी की तरफ देख रहा था |काम तो बस चार घंटे का था ,उस हिसाब से दो बजे तक उसे आ जाना चाहिए था ,लेकिन चार बज रहे हैं |अचानक कुछ सोचकर वह मुस्कुराने लगा |लगता है ओवरटाइम करना पड़ गया है |तभी दरवाजे पर एक कार रूकी |लड़खड़ाती हुई एक लड़की उतरी और अपने कमरे की ओर जाने लगी |वह चीखा -"हिसाब|"लड़की ने घृणा से पिता की तरफ देखा और अपना पर्स उसकी तरफ उछालकर अंदर चली गयी |वह पागलों की तरह रुपये निकलकर गिनने लगा -'बस दस हजार ....और ओवरटाइम के दो हजार!...धोखा!!'वह गुस्से से भरा लड़की के कमरे की और बढ़ा|लड़की बेसुध सो रही थी |उसका जी चाहां कि उसे झकझोर कर पूछे ,फिर कुछ सोचकर कमरे की तलाशी लेने लगा |लड़की के ब्लाउज से झांकते दो हरे नोट उसे दिख गए |उसकी आँखें चमकने लगीं |

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