Friday, 6 January 2012

राहत

गोरखपुर के गोलघर के सुप्रसिद्ध काली मंदिर के बाहरी दीवारों से एक बूढ़ी,बीमार औरत देर रात के सन्नाटे में  टिका दी गयी थी |निश्चित रूप से कोई अपना ही रहा होगा |वह पति-जिसने उसके यौवन का सुख उठाया होगा या वह पुत्र-जो उसके रक्त पर पला होगा |वे अपने -जिसने उसके श्रम का दोहन किया होगा |कोई भी हो सकता है,पर सुबह-सुबह भक्त-जनों ने उसे मंदिर की बाहरी दीवारों से टिके हुए देखा और अपनी पवित्रता बचाते हुए मंदिर में गए और लौटते हुए उसे हिकारत से देखा |कुछ जो दयावान ज्यादा थे,उन्होंने दो-चार पैसे भी उसकी तरफ फेंक दिए |मंदिर के बाहर स्थाई रूप से बैठने वाले पेशेवर भिखारियों ने उन पैसों को हथिया लिया |औरत में उठने-बैठने की शक्ति भी नहीं थी |वह निर्जीव वस्तु की तरह लग रही थी.जबकि जिन्दा थी |उस दिन कोई मंत्री शहर में आने वाले थे,इसलिए  उन सड़कों-गलियों का सुन्दरीकरण किया जा रहा था,जिधर से माननीय को गुजरना था |मंदिर के बाहर के सुंदरीकरण में वह बदसूरत औरत बाधक दिख रही थी |इसलिए सफाई-कर्मियों ने उसे उठाकर मंदिर के पीछे कचरे के पास वाली दीवार से टिका दिया |सबने राहत की सांस ली |

1 comment:

  1. छोटी सी बात में बहुत बडी मार्मिक बात, वाह

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