Friday, 13 January 2012

औकात

मेरी पड़ोसन का नौकर है रमेसर |उसके बेटे की ही उम्र का होगा |घरेलू काम-काज के लिए गाँव से ले आई थी |शहर में महरी से उनकी नहीं पट पाती थी |रमेसर के माँ-बाप ने पहले तो मना कर दिया,पर जब उसने उन्हें बच्चे को पढाने-लिखाने का लालच दिया,तो उन गरीबों की आँखों में एक सपना जगा कि यहाँ रहकर तो गुल्ली-डंडा खेलेगा|बहुत हुआ तो बड़ा होकर रिक्शा खींचेगा |वहाँ रहकर पढ़-लिखकर कुछ बन जाएगा |घर आकर उसने उदारता से अपने बेटे के पुराने कपड़े,काँपी-किताब रमेसर को दे दिया था|रमेसर की आँखों में खुशी चमकी थी |पर धीरे-धीरे पड़ोसन को काम शेष रहते उसका पढ़ना-लिखना खलने लगा |एक दिन उसे कसकर डपट दिया,तो सुधरा |अब काम खत्म होने का इंतजार करता है और काम को खत्म न होते देख उदास हो जाता है |सुबह जब पड़ोसन का बेटा स्कूल-यूनिफार्म में सजकर स्कूल-बस में बैठता |वह उसे हसरत से देखता हुआ पानी की बोतल थमाताऔर उदास लौटता |वह तब खुश होता,जब पड़ोसन का बेटा अंग्रेजी-धुन पर नाचता |उस समय बर्तन माँजते उसके हाथ-पैर भी थिरकने लगते |पड़ोसन बेटे के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाती,तो वह ललचाई दृष्टि से देखता |पड़ोसन नजर लगने के डर से उसे एक-दो टुकड़ा देकर बाहर जाने को कहती |वह इस बात को समझ जाता और देर तक बाहर उदास बैठा रहता |पड़ोसन को  सबसे अधिक बुरा तब लगता है,जब वह उसे खरीदारी का सामान ढोने के लिए ले जाती है और वह जूते,कपड़े,चाकलेट की दूकान पर हर चीज को अजूबे की तरह देखकर उन्हें छूने की कोशिश करता है |कभी-कभी दबी जुबान से अपने लिए कुछ खरीदने को भी कहता है |घर पहुँचकर वह उस पर चिल्लाने लगती है कि नौकर हो औकात में रहो|

2 comments:

  1. यह ही औकात है गरीब की ........सच को दिखाती रचना

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  2. आर्थिक रूप से गरीब लोगों के प्रति समाज के तथाकथित अमीरों का दृष्टिकोण दर्शाती पोस्ट .....उम्दा लिखा आप ने पहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ,लगता है आनाजाना लगा रहेगा ......

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