Tuesday, 17 January 2012

अतिथि देवो भव



उड़ते खग जिस ओर मुँह किए समझ नीड़ निज प्यारा
अरुण, यह मधुमय देश हमारा |
जयशंकर प्रसाद की कविता की यह पंक्तियाँ यह बताती हैं कि हमारा देश सभी को आश्रय देता है |विदेशी पक्षी तक इसे अपना घर समझ कर आते हैं |पर आज इन प्रवासी पक्षियों की जो हालत भारत में हो रही है,उसे क्या कहा जाए ?ये विदेशी पक्षी ५०० रूपये पीस बिक रहे हैं |कुछ पक्षी-तस्कर बेखौफ इनका धंधा कर रहे हैं |वर्दीधारी भी उनसे मिले हुए हैं |इन पक्षियों की एडवांस बुकिंग करानी पड़ती है |बुकिंग के दो दिन बाद [पुराने ग्राहक को ही ] ये उपलब्ध कराए जाते हैं,वह भी जिन्दा नहीं काटकर |गोरखपुर शहर में भी कई स्थानों पर यह धंधा चोरी-छिपे चलाया जा रहा है |इस पक्षियों की कीमत मुँहमांगी मिलती है |बखिरा झील में सैकड़ों नरकटो के झुण्ड हैं,जहाँ इन पाखियों के घोंसले होते हैं |वहीं वे अपने जोड़े के साथ रहते हैं |शिकारी मुँह-अँधेरे ही मछुआरों के वेश में छोटी डोंगी से उन झुरमुटों तक जाकर इनका शिकार करते हैं |उनकी नाँव भी वही छिपी रहती है | निश्चित रूप से वन-विभाग और पुलिस विभाग शिकारियों के क्रिया-कलाप से अनभिज्ञ नहीं होगी |लाख नियम-कानूनों के बाद भी पक्षियों की तस्करी का जारी रहना क्या साबित करता है ?दोष किसकों दें खाने वालों को कि माल बेचने वालों को या देश की मौजूदा कानून व्यवस्था को –निर्णय आप करें |मैं तो यह समझती हूँ कि दोषी को सजा मिले क्योंकि देश की खास विशेषता इस कारण प्रभावित हो रही है |’अतिथि देवो भव’वाले देश में प्रवासी पक्षियों का शिकार अपराध से कम नहीं है |

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