आज भी स्त्री के प्रति पुरुषों की मानसिकता में बदलाव दिखाई नहीं पड़ रहा है .किसी स्त्री को व्यक्ति के रूप में स्वीकार करने में नाना पूर्वाग्रह सामने आ रहे हैं | आप ही सोचिए,जब स्त्री की मित्रता को उसकी सहज उपलब्धता से जोड़ा जायेगा ,तो स्त्री कैसे मित्रता का हाथ बढाएगी ? यह ब्लाग एक बौद्धिक मंच है ,यहाँ उम्र, लिंग ,जाति –धर्म ,पद और देश के आधार पर भेद –भाव वर्जित है ,पर यहाँ पर भी सामंती मानसिकता वालों की घुसपैठ हो ही जाती है ,अब किस -किसको और कहाँ तक बाहर किया जायेगा ?क्या कोई ऐसा जादू है ,जिससे जल्द से जल्द पुरुषों की मानसिकता में बदलाव लाया जा सके |
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