Saturday, 20 August 2011

कितने कालिया ?

जन्माष्टमी पर मैं एक झांकी को देख रही हूँ _कालिया नाग के फणों पर नृत्य करते कृष्ण का |कालिया के अनगिनत फणों से अनेक चेहरे झांक रहे  हैं |ये वे चेहरे हैं ,जिन्होंने देश रूपी यमुना को प्रदूषित कर रखा है |ये हर क्षेत्र में प्रदूषण फैला रहे हैं -साहित्य ,संस्कृति ,शिक्षा ,धर्म,राजनीति,समाज ....सबमें |इनके हजारों सिर हैं |एक को दबाओं ,दूसरा उभर आता है |बड़े शक्तिशाली हैं ये ,ऊंची पहुँच वाले |आम जनता त्रस्त है इनसे ,मर रही है ,आत्महत्या कर रही है ,पर इनसे मुक्ति का कोई विकल्प नहीं सूझ रहाहै उसे |द्वापर युग में तो एक ही कालिया था ,तो ईश्वर को अवतरित होकर भगाना पड़ा उसे |पर आज तो कोई कृष्ण नहीं और अनगिनत कालिया हैं ,क्या होगा इस देश का ?आज के बाल -कृष्ण रोग से मर रहे हैं या शोषण से |नहीं तो कालियों द्वारा फैलाये मीठे जहर से |निरंतर कमजोर हो रहे इन कृष्णों  से कालियों का भला क्या बिगड़ेगा?मुझे तो डर है कि कहीं आज के कृष्ण कल के कालिया न बन जाएँ |क्या इस जन्माष्टमी पर हमें इस समस्या पर विचार नहीं करना चाहिए?

3 comments:

  1. बहुत सुंदर रंजना जी। कालिया तो एक प्रतीक भर है। भगवान श्रीकृष्ण ने वस्तुतः द्वापर में कलियुग की लीला को ही चरितार्थ किया। मैं जिस भूमि से यह पोस्ट कर रहा हूं, वह हस्तिनापुर(मेरठ) की रज है। उसी निमित ही तो महाभारत हुआ। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि श्रीकृष्ण को जितना जानने का प्रयास करोगे, लगेगा कुछ जाना ही नहीं। गुरू की महादशा लगी तो मैं ठाकुरजी का हो गया। कलियुग अभी है कहां? अभी तो उसका मध्यकाल भी नहीं आया। देखते रहिए..होता है क्या? लेकिन इसी काल-दशा से कालियों का काल भी आएगा। बस, मन में विश्वास हो।

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  2. मेरे माधव मेराभी ब्लाग है। suryakantd.blogspot.com

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  3. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ...!

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