जाति का दंश बचपन में मैंने भी झेला है|वैसे मैं जन्म से वर्णिक[बनिया]हूँ ,जो दलित जाति नहीं |पहले यह पिछड़ी जाति में भी शामिल नहीं थी,पर ब्राह्मणों के मुहल्ले में पीठ पीछे हमें 'छोट जतिया' जैसा संबोधन जरूर सुनने को मिल जाता था |विशेषकर ब्राह्मणियों द्वारा ,जो जन्मजात श्रेष्ठता की भावना से भरी रहती थीं |उनके जैसे कपड़े हम नहीं पहन सकते थे|पहन लिया,तो उनकी नकल मानी जाती थी |उनके घर जाते समय हमें सावधान रहना पड़ता था कि उनकी पवित्र वस्तुएँ छू न जाएँ |मुझे बहुत बुरा लगता था और मैं उनके घर कभी नहीं जाती थी |हाँ,एक बार एक घर में जरूर गयी थी ,जब उनके यहाँ पहली बार टीवी आया था |मेरे लिए वह अजूबा था ,पर उनकी झिड़की से आहत होकर मैंने अपने घर टीवी लाने के लिए माँ पर जोर डाला था |वे एक जूनियर इंजीनियर साहब थे ,पंडित थे, इसलिए उनकी पत्नी पंडिता थीं |किसी को अपने में नहीं लगाती थीं |उनकी बेटी राजकुमारी की तरह पल रही थी |उसकी हर बात निराली थी ,हम लोगों से हट कर थी |साधारण परिवार से होने के कारण न तो उसके जैसे कपड़े हमारे पास थे ,ना वैसा घर |थी भी वह बेहद गोरी और सुंदर |माँ उसकी खूब सराहना करती ,हर बात में उससे तुलना करती |माँ खुद जाति को मानती थी ,इसलिए पंडिताईन उनके लिए 'बड़े आदमी'थीं और हरिजन दाई माँ 'छोट आदमी'|पंडिताइन जैसा व्यवहार वे दाई माँ से करती थीं और वे भी इसे स्वाभाविक मानती थीं |पर मेरा बाल-मन इस भेद-भाव से सहमत नहीं होता था |वह राजकुमारी मेरे साथ पढ़ती थी और पढ़ाई में मुझसे तेज नहीं थी ,फिर कहाँ की राजकुमारी ?
पुरानी बात याद आने का एक कारण आज उपस्थित हुआ |एक दुकान पर एक ब्राह्मणी नौमी में कन्या पूजन का सामान खरीद रही थीं |बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि -'ब्राह्मण कन्या के पूजन से ही पुन्य लाभ मिलता है ,चाहे एक ही कन्या हो |'मैंने कहा -कन्या में भी भेद ! दुर्गा क्या इस भेद-भाव से प्रसन्न होंगी ?तो वे पूरे आत्मविश्वास से बोलीं -देवी हमेशा ब्राह्मणों की पूजा से ही प्रसन्न होती हैं |किसी दूसरी जाति को देखा है कथा बांचते ,पूजा कराते |जो ऐसा करते हैं ,वे पाप के भागी होते हैं |मैं तो हमेशा ब्राह्मण कन्या को ही जिमाती हूँ ,और यही परम्परा हमारे खानदान में चलती है|'
मैं हतप्रभ हो उठी |'क्या तीस सालों में ये स्त्रियाँ जरा भी नहीं बदली हैं ?क्या इनके घरों के पुरूष भी नहीं बदले हैं ?क्या आज भी छोटी जाति के प्रति इनके मनों में वही पहले जैसी अकूत घृणा है ?कहीं दलित बच्चियों के साथ बलात्कार में यही घृणा तो काम नहीं कर रही ?पर कुछ तो जरूर बदला है ,जो आश्वस्त करता है |अखबार में खबर है कि -आज विश्व हिन्दू महासंघ महानगर [गोरखपुर]इकाई के तत्वाधान में दलित कुंवारी कन्याओं का नवदुर्गा रूप में पूजन शीतला माता के मंदिर पर होगा |पर कहीं न कहीं मन डरता भी है कि यह सिर्फ सियासी दिखावा ना हो ,क्योंकि अब तक जाति -पाति से लोगों की मानसिकता उबरी नहीं है |
पुरानी बात याद आने का एक कारण आज उपस्थित हुआ |एक दुकान पर एक ब्राह्मणी नौमी में कन्या पूजन का सामान खरीद रही थीं |बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि -'ब्राह्मण कन्या के पूजन से ही पुन्य लाभ मिलता है ,चाहे एक ही कन्या हो |'मैंने कहा -कन्या में भी भेद ! दुर्गा क्या इस भेद-भाव से प्रसन्न होंगी ?तो वे पूरे आत्मविश्वास से बोलीं -देवी हमेशा ब्राह्मणों की पूजा से ही प्रसन्न होती हैं |किसी दूसरी जाति को देखा है कथा बांचते ,पूजा कराते |जो ऐसा करते हैं ,वे पाप के भागी होते हैं |मैं तो हमेशा ब्राह्मण कन्या को ही जिमाती हूँ ,और यही परम्परा हमारे खानदान में चलती है|'
मैं हतप्रभ हो उठी |'क्या तीस सालों में ये स्त्रियाँ जरा भी नहीं बदली हैं ?क्या इनके घरों के पुरूष भी नहीं बदले हैं ?क्या आज भी छोटी जाति के प्रति इनके मनों में वही पहले जैसी अकूत घृणा है ?कहीं दलित बच्चियों के साथ बलात्कार में यही घृणा तो काम नहीं कर रही ?पर कुछ तो जरूर बदला है ,जो आश्वस्त करता है |अखबार में खबर है कि -आज विश्व हिन्दू महासंघ महानगर [गोरखपुर]इकाई के तत्वाधान में दलित कुंवारी कन्याओं का नवदुर्गा रूप में पूजन शीतला माता के मंदिर पर होगा |पर कहीं न कहीं मन डरता भी है कि यह सिर्फ सियासी दिखावा ना हो ,क्योंकि अब तक जाति -पाति से लोगों की मानसिकता उबरी नहीं है |
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