मेरे कस्बे में लंगड़ा पंडित मशहूर थे |सभी हिन्दू घरों में पूजा-पाठ,शादी-ब्याह वे ही कराते थे |क्या मजाल कि कोई दूसरा पंडित आस-पास फटक भी जाए|वैसे भी कस्बे वालों का उन पर बहुत ही विश्वास था |वे सबके पाँव-पूजित थे |पता नहीं वे पढ़े-लिखे थे भी या नहीं,क्योंकि जब मैंने संस्कृत पढ़ना सीख लिया, तो उनका अशुद्ध श्लोक बोलना खलने लगा था |एक बार टोक दिया,तो नाराज हो गए |माँ ने उनसे क्षमा माँग ली और मुझे भी मांगने को कहा |पर उस दिन से वे मुझसे आँखें चुराने लगे |पंडित जी की सबसे बड़ी ख्याति इस वजह से थी कि वे पुत्र-यज्ञ कराते थे |ना जाने कितने निसंतानों को उस यज्ञ के कारण संतान-सुख मिला था |पंडित जी के अनुसार यह वही पुत्र-यज्ञ था,जिसके करने से राजा दशरथ को चार-चार पुत्र प्राप्त हुए थे | यह बहुत ही महंगा यज्ञ था,इसलिए बेचारे गरीब मन मसोस कर रह जाते थे |इस यज्ञ के कारण पंडित जी मालामाल हो गए| ऊपर से लोग उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे |पंडित जी ने तीन विवाह किए थे पर इस बात से उनकी प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आती थी |किसी को उनके व्यक्तिगत जीवन से कुछ लेना-देना नहीं था |पढ़ाई के सिलसिले में मैं शहर आ गयी |एक बार दीपावली की छुट्टियों में घर आई,तो माँ घर में नहीं मिली |पता चला,लंगड़ा पंडित गुजर गए हैं और माँ उनके घर गयी हुई हैं |मैं भी वहाँ जा पहुंची |देखा कि उनकी लाश यूँ ही पड़ी हुई है |उनकी तीनों पत्नियाँ बिलख रही हैं |लोगों की भीड़ जमा है और विचार-विमर्श हो रहा है कि क्या किया जाए ?परेशानी क्या है -मैंने माँ से पूछा और यह जानकर सन्न रह गयी कि पुत्र-यज्ञ कराने वाले पंडित जी की तीन पत्नियों के बावजूद अपनी कोई संतान नहीं थी|
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