Saturday, 22 October 2011

कितना अंतर ?

मेरे कॉलोनी में अक्सर एक फकीर आते हैं |श्वेत वस्त्र,गले में कौडियों की माला,कंधे पर सफेद झोला,हाथ में अंडाकार कटोरा,निर्मल,स्वच्छ आँखें आकाश की ओर उठी हुईं |वे किसी के दरवाजे पर रूकते नहीं |बस यह गाते हुए चलते जाते हैं कि -'अल्लाह सबका भला कर| देने वाले का भला कर,ना देने वाले का भी भला कर|' जो कोई कुछ भी दे देता है,वह ले लेते हैं |कोई शिकायत नहीं करते |फिर भी हिन्दू बहुल कॉलोनी वालों को उनका आना अच्छा नहीं लगता |कॉलोनी में एक बाबा जी भी अक्सर आते हैं |गेरुआ वस्त्र,माथे पर त्रिपुंड,गले में रूद्राक्ष ,आँखें लाल,कंधे पर बड़ा-सा गेरुआ झोला,चाल में एक ठसक |दरवाजों पर पहुँच कर जोर से आवाज लगाते हैं-'कोई है,देखो कौन आए हैं ?' दरवाजा खुलने में देर होने पर क्रोधित होकर शाप देने लगते हैं |कितना भी दो,कभी संतुष्ट नहीं दीखते |खुद ही मांग लेते हैं |खुश कर देने वालों को उनका आशीर्वाद मिलता है,ना कर पाने वालों को शाप |फिर भी कॉलोनी वालों को उनका इंतजार रहता है |

2 comments:

  1. samaj ko aina dikha diya madam aapne.Laaton ke bhoot baaton ,pyaar thode hi mante hai.

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  2. छोटी सी बात में बडी बात कह दी आपने

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