Thursday, 6 October 2011

इज्जत

शाम के धुंधलके में एक स्त्री तेजी से सुनसान गली को पार कर रही थी कि अचानक एक उचक्का चाकू लिए उसके सामने आ गया |बोला -'जो कुछ पास में है ,चुपचाप निकाल दो |'कहते हुए उसने स्त्री की देह पर नजर डाली |उसकी देह पर उतारने लायक कुछ ना था |हाँ,एक छोटे से बटुए को वह अपने ब्लाउज के अंदर छिपाए हुए थी |
'बटुआ निकालो -वह गरजा| 
स्त्री ने कस कर अपने ब्लाउज को पकड़ लिया और गिड़गिड़ाई -इसे मैं नहीं दे सकती |कभी ,किसी हालत में नहीं |
उचक्के ने सारे दाव-पेंच आजमा डाले |जान ले लेने से लेकर तेज़ाब से चेहरा बिगाड़ देने की धमकी दी ,पर स्त्री टस से मस नहीं हुई |तब उसने सोचा -स्त्री को अपनी इज्जत से सबसे ज्यादा प्यार होता है,इसे खोकर वह जीना भी नहीं चाहती |
वह चेहरे पर क्रूर भाव लाकर हँसा-दे दो बटुआ ,वरना तुम्हारी इज्जत लूट लूँगा |
स्त्री नहीं डरी |उदासीन भाव से बोली -'लूट लो भैया |लूटी हुई इज्जत एक बार और लूट जाएगी,तो क्या फर्क पड़ेगा ?मैं तो वैसे भी मरी हुई हूँ |पर यह बटुआ नहीं दूंगी |इसमें जो रूपएं हैं, वह मेरे मर रहे बच्चे के इलाज के लिए हैं और इसे अपनी इज्जत बेच के लाई हूँ |'कहते हुए वह फफक पड़ी,उचक्के के हाथ से चाकू छूटकर गिर पड़ी |

1 comment: