गोरखपुर मंडल के ग्रामीण क्षेत्रों में आजकल धोकरकसवा का खौफ छाया गया है |वैसे भी इस मंडल में किसी न किसी का खौफ छाया रहता है ||बस नाम बदल जाता है |पहले लकड़सुंघवा फिर मुँहनोचवा और अब धोकरकसवा |धोकरकसवा बच्चों को उठा ले जाता है,इस डर से ग्रामीण शाम ढलते ही अपने बच्चों को घरों में कैद कर दे रहे हैं और खुद जग कर गाँव की रखवाली कर रहे हैं |धोकरकसवा स्त्री-पुरूष किसी भी रूप में हो सकता है |उसके हाथ में बोरा या बड़ा-सा झोला होता है|जिसमें वह बच्चों को भर कर उठा ले जाता है|लीजिए भई २१ अक्टूबर को बोरे में बालक को भरते दो धोकरकसवा ग्रामीणों द्वारा पकड़े गए हैं |बहरहाल पुलिस की पूछ-ताछ जारी है और निश्चित रूप से वे भी उन्हीं लोगों में से निकलेंगे,जो शक के कारण इन दिनों ग्रामीणों के शिकार हुए हैं |आजकल गांवों में शाम-ढले किसी रिश्तेदारी में जाना मुहाल है|कुछ लोग इसी बहाने अपने दुश्मनों से बदला भी चुका ले रहे हैं |धोकरकसवा की कहानी मैंने अपने बचपन में माँ से भी सुनी थी |हम बच्चे दुपहरिया या शाम ढलने के बाद घर से बाहर न निकले,इसलिए माँ ने धोकरकसवा से डरा रखा था कि धोकरकसवा बच्चों को उठा कर अपने घर ले जाता था और उन्हें पका कर खा लेता है |यह बात तब उतनी विश्वस्त नहीं लगती थी,पर अब निठारी कांड के बाद यह भी असम्भव नहीं लगता |पुराने धोकरकसवा को शायद आज की तरह बच्चों का उपयोग करना नहीं आता था |या यूं कहें कि वह इस कदर गिरा हुआ नहीं होता होगा |नया धोकरकसवा भी पुराने की तरह ही है |शायद ग्रामीणों की कल्पना आज भी उस क्रूरता तक नहीं पहुँच पा रही है,जो आजकल अपहृत किए गए बच्चों का नसीब बनी हुई है |बच्चों को अपंग कर उनसे भीख मंगवाना अब पुरानी बात है,बलि चढाना भी |अब तो बच्चों के अंगों को निकाल कर बेच दिया जा रहा है |उनसे देह-व्यापार कराया जा रहा है|मनुष्य के गिरने की इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है ?बच्चों को इस गलीज काम के लिए दूसरे देशों में भेजा जा रहा है |अभी इसी सप्ताह झारखंड के पश्चिमी सिंघभूम जिले में रेलवे पुलिस ने तीन नाबालिक बच्चों के साथ एक फ्रांसीसी नागरिक गोएट को गिरफ्तार किया है|बच्चे पश्चिम बंगाल के हैं,बच्चों को बहला –फुसलाकर ले जा रहा यह विदेशी शालीमार से कुर्ला जा रही कुर्ला एक्सप्रेस ट्रेन के प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित कोच में ही बच्चों के साथ कथित तौर पर गलत हरकत कर रहा था |
बच्चों का शोषण विविध तरीकों से किया जा रहा है|कहीं वे बंधुआ मजदूर हैं,कहीं कबाड़ी |चोरी-चकारी से लेकर नशा बेचने का काम वे कर रहे हैं |आतंकवादी भी अब उनका उपयोग करते देखे जा रहे हैं | चूड़ी व पटाखे बनाने जैसे खतरनाक कामों में भी बच्चे देर रात तक काम करके अपना बचपन व स्वास्थ्य गँवाते देखे जा सकते हैं |बच्चे यह सब मजबूरी के कारण कर रहे हैं |इनमें सारे बच्चे अपहृत नहीं हैं |कुछ घर से भागे हुए हैं,तो कुछ अपने माता-पिता की सहमति से भी ये सब कर रहे हैं| बच्चों का बचपन खतरे में हैं |ना जाने कितने धोकरकसवा रक्तबीज की तरह बढ़ते जा रहे हैं |वे काल्पनिक धोकरकसवा नहीं हैं,ना ही उनकी तरह बोरा लेकर घूमने वाले गँवार|उनके हाथ बड़े हैं और पहुँच भी |उनको पहचानने की जरूरत है और उनके खिलाफ कठोर कदम उठाने की भी,वरना देश के भविष्य को नहीं बचाया जा सकता |
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