Sunday 28 August 2011

स्त्री -विरोधी विज्ञापन

कोई पुरुष एक खास किस्म का  परफ्यूम लगाता है ,और कई स्त्रियां उससे चिपक जाती हैं ,मानों उनका अस्तित्व इसी काम से सार्थकता पाता हो |परफ्यूम ही क्यों ,चाकलेट ,सेविंग क्रीम ,कार,मोटरसाइकिल इत्यादि के विज्ञापन में भी स्त्रियों को इसी उद्देश्य से रखा जाता है ,पुरुष इन प्रोडक्टों का इस्तेमाल करके राह चलते किसी भी स्त्री का यौन निमंत्रण पा सकता है 
स्त्रियों की काम -भावनाओं को विकृत तरीके से पेश कर विज्ञापन निर्माता धन उगाही में लगे हुए हैं |वे जानते हैं कि यौन मनुष्य[विशेषकर युवाओं की ] की कमजोरी भी है और शक्ति भी |युवा नए -नए प्रयोगों की तरफ आसानी से आकृष्ट हो जाता है ,इसलिए अपने उत्पाद के साथ वे स्त्री को परोस रहे हैं |उस पर दावा यह कि वे स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं |
स्त्रियों में अन्धविश्वास फैलाने का काम भी विज्ञापनों द्वारा खूब हो रहा है |यह भी कोई बात हुई कि गोरेपन की क्रीम लगाते ही स्त्री की किस्मत खुल गयी |कुंडली मिल गया ,प्रेमी वश में हो गया ,नौकरी मिल गयी |हद है!
स्त्रियों को पुरुष की तरह बलवान व आत्मनिर्भर बनाने का दावा करने वाले विज्ञापन भी दरअसल अपना उत्पाद बेचने के लिए तमाम भ्रम ही फैला रहे हैं | विचारों से आधुनिक व सक्षम हुए किसी परिवर्तन की उम्मीद की ही कैसे जा सकती है ?स्त्रियों को इन षड्यंत्रों को समझ कर खुद के इस्तेमाल किये जाने के खिलाफ उठ खड़ा होना पड़ेगा |

Saturday 20 August 2011

कितने कालिया ?

जन्माष्टमी पर मैं एक झांकी को देख रही हूँ _कालिया नाग के फणों पर नृत्य करते कृष्ण का |कालिया के अनगिनत फणों से अनेक चेहरे झांक रहे  हैं |ये वे चेहरे हैं ,जिन्होंने देश रूपी यमुना को प्रदूषित कर रखा है |ये हर क्षेत्र में प्रदूषण फैला रहे हैं -साहित्य ,संस्कृति ,शिक्षा ,धर्म,राजनीति,समाज ....सबमें |इनके हजारों सिर हैं |एक को दबाओं ,दूसरा उभर आता है |बड़े शक्तिशाली हैं ये ,ऊंची पहुँच वाले |आम जनता त्रस्त है इनसे ,मर रही है ,आत्महत्या कर रही है ,पर इनसे मुक्ति का कोई विकल्प नहीं सूझ रहाहै उसे |द्वापर युग में तो एक ही कालिया था ,तो ईश्वर को अवतरित होकर भगाना पड़ा उसे |पर आज तो कोई कृष्ण नहीं और अनगिनत कालिया हैं ,क्या होगा इस देश का ?आज के बाल -कृष्ण रोग से मर रहे हैं या शोषण से |नहीं तो कालियों द्वारा फैलाये मीठे जहर से |निरंतर कमजोर हो रहे इन कृष्णों  से कालियों का भला क्या बिगड़ेगा?मुझे तो डर है कि कहीं आज के कृष्ण कल के कालिया न बन जाएँ |क्या इस जन्माष्टमी पर हमें इस समस्या पर विचार नहीं करना चाहिए?

Wednesday 17 August 2011

आखिर कब ?

जब मेरी कवितायेँ नहीं छपती थीं ,तो वे कहते थे -"स्त्री है क्या खाक लिखती है,जो छपेगी ?"जब छपने लगी ,तो कहने लगे ",स्त्री होने के नाते छप रही है |" क्यों स्त्री के लेखन को संदेह की नजर से देखने की परम्परा है ?गनीमत है कि किसी पुरूष से जुड़ी नहीं हूँ ,वरना वे यह भी कह देते ,मैं नहीं वही लिख रहा है मेरे लिए ,जैसा कई अच्छी स्त्री रचनाकारों के बारे में  कहा जाता है |हाँ ,ज्यादा छपने के कारण उन लोगो ने मेरे बारे में तमाम खराब बातें लिखकर {जिसमें चरित्र हनन से लेकर बड़ी उम्र के होने का ताना भी था }संपादकों को भेजा |यानि कि मुझे लेखन से विरत करने का हर सम्भव प्रयास किया गया |सोचती हूँ कि कितने कमजोर होते हैं ,वे पुरूष ,जो स्त्री के लेखन को बकवास भी समझते हैं ,और उससे इतना डरते भी हैं कि ऐसे ओछे  हथकंडे अपनाते  हैं |आखिर कब ऐसा समझा जायेगा कि स्त्री भी दिमाग रखती है ,सोच सकती है ,लिख सकती है |स्त्री को व्यक्ति कब समझा जायेगा ? 

Saturday 13 August 2011

शर्म मगर उन्हें नहीं आती

अभी कुछ दिन पहले एक शहर में एक गैंग पकड़ा गया ,जो आठ वर्ष की बच्चियों को आक्सीटोसीन का इंजेक्शन लगाकर समय से पूर्व उन्हें बड़ा बनाकर देह व्यापार में धकेल देता था |रूपये कमाने के लिए इस हद तक गिर जाने वाले ये लोग कौन हैं ,और वे लोग कौन हैं ,जिनकी गलीज इच्छापूर्ति के लिए यह व्यापार देश में तेजी से फैल रहा है ?क्या उन्हें शर्म नहीं आती ?

रिश्ते

कल रक्षाबन्धन में घर गयी थी ,एक उदासी लेकर लौटी |रिश्तों में अब वह मिठास नहीं बची |सब कुछ औपचारिक सा होकर रह गया है |ज्यों -ज्यों भाई अमीर होते गए है ,उनका स्नेह घटता गया है ,बहनें  भी अब तोहफें ही देख रही हैं |तीन अमीर बेटों की माँ होकर भी माँ बीमार -कमजोर व लाचार दिखी,फिर भी बेटों का मोह उनपर भारी है |सभी अपने -आप में गुम हैं,सबकी अपनी परेशानियां हैं |उनके बीच मैं अपनी परेशानी भूल जाती हूँ,फिर भी जाने क्यों घर से आने के बाद उदास हो जाती हूँ ?

Friday 12 August 2011

पुरूष-चरित्र


पुरूषों का यह कैसा चरित्र है?कहीं-कहीं वे इस बात पर इतराते मिलते हैं कि उनके कई स्त्रियों से संबंध रहे हैं और उनसे उनकी संतानें भी हैं,तो कहीं वे पुरजोर कोशिश करते हैं कि उनकी रास लीलाएं जग-जाहिर ना हो|इतराने वालों के बेहतरीन उदाहरणइस वर्ष चर्चित वेबसाइट विकीलिक्स के संस्थापक जूलियन असांजे रहे,जो सभा-समाज में भी इस बात की वाहवाही लेते रहे कि दुनिया के अलग-अलग हिस्से में उनके कई बच्चे हैं |उनकी सबसे बड़ी कामना रही कि प्रत्येक महाद्वीप में अधिक से अधिक जूलियन हों | भारत में भी उनके जैसी मानसिकता वालों की कमी नहीं,पर खुलेआम इसे स्वीकार करने का साहस उनमें नहीं आ पाया है|इसके सबसे ताजा सबूत नारायण दत्त तिवारी हैं|तिवारी जी रोहित तिवारी के जैविक पुत्र होने के दावे को लगातार ठुकराए रहे,पर डीएनए के रिपोर्ट ने सच से पर्दा उठा दिया है |अब वे क्या सफाई देंगे ?
आखिर क्यों पुरूष अपने किए पर पर्दा डालता है ?अपने प्रेम को पाप बनाते,उसका सारा दोष स्त्री पर डालते उसे एक पल भी नहीं लगता |मधुमिता हत्याकांड भी तो इसी पुरूष-चरित्र का परिणाम था |ऊपर से शास्त्र ने कह दिया -'स्त्री के चरित्र और पुरूष के भाग्य का पता नहीं होता |'और पुरूष ने स्त्री को आहत करने के लिए घातक  हथियार की तरह इस फतवे का इस्तेमाल किया |स्त्री हीन-भाव से भर अनकिए अपराधों की सजा पाती रही और पुरूष अपराधी होने पर भी मूछों पे ताव देता रहा |ऐसे रिश्तों से उत्पन्न संतानें भी माँ को ही दोषी मानती रहीं |अपने परित्याग के लिए कुंती को दोष देने वाले कर्ण ने क्या सूर्य को जनता की अदालत में घसीटा ? रोहित शेखर ने जग-हंसाईं की परवाह न करते हुए अपने पुत्र होने को साबित किया और अपनी माँ का मुख उज्ज्वल किया,इसके लिए उन्हें साधुवाद |कम से कम अब तो ऐसे पुरूष-चरित्र उजागर होंगे |मैं तो आज से ही कहती हूँ -पुरूष के चरित्र को देवता भी नहीं समझ सकते.इसलिए स्त्रियों सावधान |भाग्य तुम्हारा भी होता है |पौरूष तुममें भी है |

Monday 8 August 2011

बदलाव

आज भी स्त्री के प्रति पुरुषों की मानसिकता में बदलाव दिखाई नहीं पड़ रहा है .किसी स्त्री को व्यक्ति के रूप में स्वीकार करने में नाना पूर्वाग्रह सामने आ रहे हैं | आप ही सोचिए,जब स्त्री की मित्रता को उसकी सहज उपलब्धता से जोड़ा जायेगा ,तो स्त्री कैसे मित्रता का हाथ बढाएगी ? यह ब्लाग एक बौद्धिक मंच है ,यहाँ उम्र, लिंग ,जाति –धर्म ,पद और देश के आधार पर भेद –भाव वर्जित है ,पर यहाँ पर भी सामंती मानसिकता वालों की घुसपैठ हो ही जाती है ,अब किस -किसको और कहाँ तक बाहर किया जायेगा ?क्या कोई ऐसा जादू है ,जिससे जल्द से जल्द पुरुषों की मानसिकता में बदलाव लाया जा सके |

स्त्री की उम्र

कुछ  लोग स्त्री की उम्र के पीछे पड़े रहते हैं .स्त्री कितने वर्ष की है ,यह 



 सवाल तब मायने रख सकता है ,जब विवाह का प्रसंग हो ,या स्त्री

 प्रेम निवेदन कर रही हो ,पर कुछ लोग हर स्त्री की उम्र जानने के 


इच्छुक होते हैं .उसकी योग्यता को भी उम्र के तराजू पर तौलते है .उलटे

–सीधे रिमार्क करते है .क्यों ?


कब स्त्री को व्यक्तित्व के रूप में स्वीकारेंगे लोग?कब मानेंगे कि 


परिपक्वता में भी अद्भुत सौंदर्य होता है ?पुरुष साठे पर पाठा होता है और


स्त्री माता ‘इस सामंती सोच से कब उबरेंगे लोग ?