Friday 30 September 2011

संवेदना

एक बुजुर्ग कवि ने पितृपक्ष के आखिरी दिन ब्राह्मणों को दान देने की अपेक्षा गरीब-भिखारियों को खाना खिलाना उचित समझा और काली मंदिर के पास जा पहुँचे|सबसे पहले उन्होंने दो बुजुर्ग स्त्रियों को भोजन दिया |उपर से दस-दस रूपये भी |फिर सभी भिखारियों को भोजन और रूपये बाँटने लगे |तभी एक रिक्शा वाला दौड़ा आया और उसने भी भोजन की मांग की |कवि ने कहा -'यह भोजन गरीबों के लिए है |गिनकर मंगवाया गया है ,इसलिए वह माफ़ करे|'रिक्शे वाला आग -बबूला हो उठा |लगा बद् दुआ देने -'तहके हम अमीर लउकत बानी ,तहार सब नष्ट हो जाई|'बेचारे कवि अभी दुखी हो ही रहे थे कि वे दोनों बुजुर्ग औरतें फिर खाना लेने वालों की लाइन में आ खड़ी हुईं |कवि ने उन्हें पहचान कर कहा -'आप लोगों को तो सबसे पहले ही भोजन दिया था|'वे इंकार करने लगीं |जब कवि नहीं माने तो उन्होंने ऐसी -ऐसी गालियां व बददुआएं उन्हें दीं कि उनके होश फाख्ता हो गए |यह घटना मुझे बताते समय कवि की आँखों में आँसू थे |मैं सोचने लगी -क्या संवेदना भी आज बिकाऊ माल है |

Tuesday 27 September 2011

बहती गंगा


मुझे बड़ी उम्र की लड़कियाँ पसंद हैं ...इसलिए तुम्हें प्यार करता हूँ ...|"
तीस वर्षीय युवती से बीस वर्ष के नवयुवक ने कहा |
-लोग क्या कहेंगे ?हमारी जोड़ी देखकर हँसेंगे या नहीं ..|
"मुझे लोगों की परवाह नहीं |"
-दस वर्ष बाद मैं अधेड़ हो जाऊँगी, तो क्या तुम मुझसे विरक्त नहीं हो जाओगे ?
"इतना नीच नहीं हूँ ...फिर प्रेम सिर्फ शरीर से थोड़े होता है ..|शरीर तो माध्यम है आत्मा तक पहुँचने का |"
-तुम इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी -बड़ी बातें कैसे कर लेते हो ?
"खबरदार !जो आज के बाद मुझे कम उम्र कहा |मैं बुद्धि से वयस्क हूँ तुमसे |कम उम्र की लड़कियाँ तो मुझे बच्ची लगती हैं |"
-फिर भी मैं उम्र में तुमसे बड़ी तो हूँ ही |
"एक थप्पड़ लगाऊंगा ...|.बच्ची -सी अक्ल और चली हैं बड़ी बनने ..|"
           और दोनों में दोस्ती हो गयी |दोस्ती प्यार में बदली और लड़की सपने देखने लगी |लोगों ने कहा -लड़की चालू है ...लड़के को फंसा लिया |लड़के के दोस्तों ने पूछा -क्यों यार ,बड़े चर्चे हैं तुम्हारे |शादी करोगे क्या उससे ?
लड़का हँसा -'शादी ..!और उस बुढिया से !अरे ,टाईम-पास कर रहा हूँ  |....बहती गंगा है ..हाथ धो रहा हूँ |'

Wednesday 21 September 2011

हिसाब

वह बेचैनी से बार-बार घड़ी की तरफ देख रहा था |काम तो बस चार घंटे का था ,उस हिसाब से दो बजे तक उसे आ जाना चाहिए था ,लेकिन चार बज रहे हैं |अचानक कुछ सोचकर वह मुस्कुराने लगा |लगता है ओवरटाइम करना पड़ गया है |तभी दरवाजे पर एक कार रूकी |लड़खड़ाती हुई एक लड़की उतरी और अपने कमरे की ओर जाने लगी |वह चीखा -"हिसाब|"लड़की ने घृणा से पिता की तरफ देखा और अपना पर्स उसकी तरफ उछालकर अंदर चली गयी |वह पागलों की तरह रुपये निकलकर गिनने लगा -'बस दस हजार ....और ओवरटाइम के दो हजार!...धोखा!!'वह गुस्से से भरा लड़की के कमरे की और बढ़ा|लड़की बेसुध सो रही थी |उसका जी चाहां कि उसे झकझोर कर पूछे ,फिर कुछ सोचकर कमरे की तलाशी लेने लगा |लड़की के ब्लाउज से झांकते दो हरे नोट उसे दिख गए |उसकी आँखें चमकने लगीं |

Tuesday 13 September 2011

चौथा रास्ता

तीन अधेड़ स्त्रियाँ थीं |उनमें पहली ने विवाह नहीं किया था |सफल ,आत्मनिर्भर ,अपने ढंग से जीवन जी चुकी वह स्त्री उम्र के इस ढलान पर एक बच्चे के लिए ललक रही थी ,जो जवानी में डंके की चोट पे नहीं चाहिए था उसे |बच्चे के बिना उसे अपनी सफलता बेमानी लग रही है|
 दूसरी स्त्री इसी उम्र में जोड़ो के दर्द का शिकार है |बच्चे बड़े और आत्मनिर्भर हो चुके हैं |उन्हें अब माँ की जरूरत नहीं रही |माँ को ही उनकी जरूरत है ,पर वे उसे बोझ समझ रहे हैं |वह सोच रही है कि काश .बच्चों की परवरिश में अपनी प्रतिभा क उत्सर्ग नहीं किया होता ,तो वह भी आज सफल व आत्मनिर्भर होती |
तीसरी स्त्री पूरी जवानी बच्चों और नौकरी के बीच झूलती रही थी |वह हमेशा तनाव में रही |कभी सोचती -कहीं अपनी महत्वाकांक्षा में बच्चों  की उपेक्षा तो नहीं कर रही ,तो कभी सोचती -बच्चों के कारण अपने पेशे के साथ बेईमानी तो नहीं कर रही| आज वह डिप्रेशन की मरीज है |
तीनों स्त्रियाँ तड़प रही हैं और मैं सोच रही हूँ |चौथा रास्ता कौन है ?

Monday 12 September 2011

सफल स्त्री

वह बड़ी नेता है |
"अमुक नेता की रखैल जो है |"
वह नामी खिलाड़ी है | 
"अपने कोच की विशिष्ट..|" 
वह अच्छी लेखिका है |
'प्रसिद्ध लेखक की ..|"
वह अच्छी पत्रकार है |
"संपादक की पत्नी बीमार रहती है ..|"
वह प्रिंसिपल बन गयी |
"मैनेजर का बिस्तर ...|'
आपका मतलब हर सफल स्त्री किसी न किसी पुरुष की ....?
'जी नहीं मेरा मतलब यह नहीं था -बहुत सी स्त्रियां अपने बल पर भी सफल हैं |जैसे मेरी बहन सफल डॉक्टर है ,मेरी माँ प्रिंसिपल है और मेरी बेटी अच्छी खिलाड़ी |"

Sunday 11 September 2011

दयालु

वे बड़े दयालु थे |बाल -श्रमिकों को देखकर उनका दिल रो पड़ता |उन्होंने बाल -कल्याण के लिए अनेक कार्यक्रम चला रखे थे ,जिनमें सरकार भी सहयोग कर रही थी |
उस दिन वे एक समारोह में भारत के नौनिहालों के भविष्य पर भावुक भाषण देकर लौटे |तपती दुपहरिया थी |घर पर सिवाय दस वर्षीय नौकर के सिवा कोई न था |घंटी बजाने पर दरवाजा खोलने में दो मिनट की देर हुई |नौकर नींद से बोझिल आँखों को खोल नहीं पा रहा था |वे गुस्से से भर उठे -"हरामजादे .....मादर.....तेरी ......|" गाली बकते हुए उन्होंने उसे झन्नाटेदार तमाचा दे मारा |नौकर रोता हुआ अंदर गया और खाने की मेज पर खाना लगाने लगा |उन्होंने खाना खाया और बेडरूम में चले गए |नौकर ने उनकी जूठन को मुँह लगाया ही था कि उन्होंने आवाज दी |हाथ धोकर वह सहमता  हुआ -सा अंदर गया |उन्होंने बड़े ही रोमांटिक दृष्टि से उसे देखा और बिस्तर पर खींच लिया |

Saturday 10 September 2011

कुम्भीपाक नरक

चुनाव का मौसम समीप था|नाजुक -सी वे एक गरीब बस्ती में गयी |वहाँ न पानी था ,न बिजली|जगह -जगह बदबूदार नालियां और रेंगते कीड़े से लोग |सलाहकार ने उनके कान में कहा -"एक बच्चे को गोद में उठाइए ,उसकी बहती नाक पोंछ दीजिए ,बस यहाँ के सारे वोट आपके ..|"
उन्होंने बच्चे की बहती नाक को देखा |उन्हें धर्मग्रन्थों में वर्णित कुम्भीपाक नरक की याद आ गयी |वे बेहोश हो गयीं |
दूसरे दिन एक खबर अखबार की सुर्ख़ियों में था -"वे भारत के नौनिहालों की बदतर हालत न देख सकीं और दुःख से बेहोश हो गयीं |"

Friday 2 September 2011

दोषी कौन ?


जून महीने में गोरखपुर के अख़बारों में शिखा उर्फ पूजा हत्याकांड प्रमुखता से छपा इस हत्याकांड में कई बातें गौरतलब थीं -
१ -जिस लड़की की हत्या हुई ,वह शिखा नहीं, सोनभद्र की पूजा थी
२ -शिखा ने पूजा की हत्या का षड्यंत्र अपने प्रेमी दीपू यादव के साथ मिलकर किया ,दीपू का ट्रकचालक लल्ला व उसके मित्र सुमित ने भी इसमें उनका साथ दिया |
३ -हत्या के बाद शिखा ने पूजा के शव को अपने कपड़े पहनाएँ,ताकि उसके घर वाले उसे मरा हुआ मान लें |
४ -लल्ला और सुमित ने पूजा के शव को विकृत कर दिया, ताकि वह  दुर्घटना का शिकार लगे |
५ -पूजा के चयन के पीछे उसकी कद -काठी का शिखा जैसा होना था |
६ -पूजा वर्षों से लल्ला व दूसरे ट्रक चालकों के संपर्क में थी, क्योंकि अपने बेटे की परवरिश के लिए उसे पैसों की जरूरत थी |वह विधवा थी तथा ससुराल व मायके से उसे कोई मदद नहीं मिल रही थी |
                इस घटना ने जनमानस को हिला दिया |दीपू के पिता चन्द्रभान अपने पुत्र की करनी से शर्मिंदा हुए ,तो शिखा के पिता उसे अपनी पुत्री मानने से ही इंकार रहे हैं |पूजा के पिता होरीलाल बेटी की हत्या से दुखी हैं और सूद के पैसे से उसका ब्रह्मभोज करने की बात कर रहे हैं गौर करें कि पूजा अपने ७ वर्ष के पुत्र के साथ पटबंध में एक प्राथमिक स्कूल के बगल में किराये के मकान में रहती थी और लल्ला व अन्य चालकों का मन बहलाकर जीवन चला रही थी |आश्चर्य तो यह है कि जो पिता आज न्याय की गुहार लगा रहे हैं ,यह सोच कर  खुश रहा करते थे कि बेटी मेहनत -मजूरी करके जीवन चला रही है |पर कैसी मजूरी यह जानने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की थी |दीपू के पिता इस बात से इंकार कर  रहे हैं कि उन्हें दीपू और शिखा के अफेयर की जानकारी थी ,जबकि एक वर्ष पूर्व शिखा ने जहर खा कर  उन्हीं के घर में शरण लिया था और उनकी पत्नी ने ही उसे अस्पताल पहुँचाया था |इस हत्याकांड में सबसे दुखद पक्ष तो पूजा का है.बचपन के वह खौलते तेल में गिरकर जल गयी, फिर उम्र भर जलती ही रही| विवाह के चार साल बाद बाद ही पति -सुख से वंचित हो गयी |किसी ने भी उसकी मदद नहीं की |प्रेमी के नाम पर लल्ला मिला ,जिसने वर्षों उसका उपभोग किया -करवाया और अंततः उसकी मौत का सौदा भी कर लिया |तड़पा-तड़पा कर उसकी देह से आत्मा को निकाला गया |उस पर भी बस कहाँ हुआ? उसके शव को पहले विकृत किया गया ,फिर जाँच के नाम पर २ -२ बार चीर-फाड़ हुई | और दूसरे के नाम से दाह-संस्कार हुआ|आखिर उसका अपराध क्या था ?गरीब होना कि स्त्री होना ! क्यों ऐसी स्त्रियों के पास देह बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं ?हजारों-हजार पूजाएं इस देश में ऐसे ही नर्क में जी रही हैं और कुतिया की  मौत मर रही हैं |अक्सर हाइवे के सूनसान जगहों पर विकृत मादा -देह मिलती है ,जिनकी शिनाख्त तक नहीं हो पाती |चंद रुपयों के लिए रेलवे स्टेशनों व शहर के कोने -अतरों  में मोल -भाव करती औरतों को देखकर जहाँ वितृष्णा होती हैं ,वहीं  मजबूरी को खरीदने वालों को गोली से उड़ा देने को जी चाहता है |
            अब शिखा की बात करें ,आज पिता, परिवार -समाज सब उस पर थूक रहे हैं कि अपना प्यार पाने के लिए उसने एक निर्दोष लड़की की बलि ले ली |शिखा रो -रोकर फरियाद कर रही है कि माता -पिता को बदनामी से बचाने और उनको दुःख न पहुँचाने की मंशा ने उसे ऐसा करने को मजबूर किया ,तो क्या शिखा के पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था?क्या उसके माता -पिता किसी भी तरह उसके विवाह को राजी नहीं थे ?ऐसा तो हो नहीं सकता कि एक वर्ष पहले ,जब इस प्रेम में शिखा ने विष खा लिया था ,तो उसके अभिभावकों को पता नहीं चला होगा |फिर क्यों उन्होंने उनके प्रेम को स्वीकृति नहीं दी ?क्या ऐसा करके वे इस हादसे को होने से नहीं रोक सकते थे?लड़की को दोषी ठहरा देना सबसे आसान काम है ,इसलिए शिखा दोषी है,पर विचार करने की जरूरत है कि आखिर असली दोषी कौन है ?