Tuesday 26 January 2016

स्त्री का खल रूप -एक विचार

अभी हाल ही में गोरखपुर के शाहपुर थाना क्षेत्र के अशोक नगर में एक स्त्री अर्चना ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर नेत्र परीक्षक अपने पति और पाँच साल के बेटे को मार दिया |पति की यह दूसरी शादी थी |पहली पत्नी सिंगापुर की थी |वहीं नौकरी करती थी |पति के घर आकर रहने को तैयार नहीं थी इसलिए उससे तलाक हो चुका था |छह वर्ष पूर्व विवाहिता वर्तमान पत्नी अर्चना से भी नेत्र परीक्षक के संबंध मधुर नहीं थे |दस माह पूर्व फेसबुक के माध्यम से अजय नामक युवक उसके जीवन में दाखिल हुआ था |दोनों के बीच इस तरह संबंध प्रगाढ़ हुए कि उन्होंने पति –बच्चे को बीच से हटा दिया | पकड़े गए ,जेल में हैं |मुकदमा चल रहा है |पहले पुलिस ने उनकी खूब आवभगत की ,फिर शुरू हुआ सामाजिक प्रतारणा का सिलसिला ,जिसका प्रेमी से ज्यादा अर्चना शिकार हो रही है |जेल में पहले महिला पुलिस, फिर महिला कैदियों ने डायन कहकर उसकी कुट्टमस की |कचहरी में वकील उग्र हो गए |बाहर जनता |चारों ओर थू थू छि छि का माहौल है |सच भी है कोई माँ इतनी निर्मम कैसे हो सकती है कि अपने ही बच्चे को मार डाले ?वह भी प्रेम प्रसंग में |वैसे तो आए दिन अपने बच्चों के साथ औरतें कभी गरीबी-बदहाली और ज़्यादातर गृह-कलह ,पति से मतभेद के कारण आत्महत्याएँ करती रहती हैं पर वह और बात है |उसमें वे अपने प्रेम अपने सुख के लिए ऐसा नहीं करतीं और खुद भी मर जाती हैं ,इसलिए यह समाज, पुलिस और कानून को उतना नहीं खटकता |वैसे भी रोजाना की खबर है ये और नैतिकता का प्रश्न इसे नहीं माना जाता |बहुत हुआ तो यह सरकार का दोष मान लिया जाता है |मर जाने वाली औरत को कोई कहेगा भी तो क्या ?हाँ जो जिंदा बच जाती हैं उनकी थोड़ी नोटिस ले ली जाती है |
पर यह तो नायाब मामला है क्योंकि इसमें एक मासूम बच्चे की जान ली गयी है वह भी सगी माँ द्वारा |
स्त्री का यह खल रूप पहला नहीं है |इसके पहले भी कभी-कभार इस तरह की खबरें समाचार बनती रही हैं |
२५ अप्रैल २०१२ को भी थाना रामपुर कारखाना अंतर्गत ग्राम गौतमचक मठिया में ३५ वर्षीया एक महिला ने अपनी दो साल की बेटी को चाकू मारकर घायल कर दिया था |महिला की तीन लड़कियाँ थीं ,लड़का एक भी नहीं |कुछ समय पूर्व तिर्वा[कन्नौज]कोतवाली क्षेत्र के हरिहरपुर गाँव में देर रात एक माँ ने अपने दो मासूम बच्चों को हंसिए से काट डाला था |अखबार के अनुसार तो उसने उनके खून को भी गटक लिया था| २४ अगस्त २०१२ रामकोला थानाक्षेत्र के रामबर बुजुर्ग में एक वृद्धा ने अपनी सगी नातिन का गला दबाकर हत्या कर दी थी |अमेरिका में भी एक शिक्षित-समझदार,बच्चों से बेहद प्यार करने वाली ३६ वर्षीया माँ एंड्रिया येट्स ने अपने ५ बच्चों को बात टब में डूबा कर मार डाला था |९ नवम्बर २०११ को लन्दन की एक माँ ने अपनी नवजात बच्ची को वाशिंग मशीन में डालकर मार डाला |चंडीगढ़ की डिम्पल गोयल ने १५ साल तक अपने दो बच्चों को इतनी कड़ी कैद में रखा था कि पड़ोसियों तक को कभी उनके वहाँ होने का शक नहीं हुआ था |दिल्ली की एक माँ भी अपने तीन युवा होते बेटों के साथ अपने घर में ८ साल कैद रही थी| इधर पूर्वांचल में लगातार ऐसी खबरें छप रही हैं,जब औरतें बच्चों को मारकर खुद मर जा रही हैं |कोई जहर खाकर,कोई नदी-नालेमें कूदकर,तो ज्यादातर ट्रेन के नीचे लेटकर |कभी-कभी बच्चों को फेंकने या बेचने वाली,उनसे भीख मंगवाने वाली तथा दूसरे कई और अपराध करवाने वाली माताओं का भी पता चल रहा है | एक अध्ययन के अनुसार अमेरिकी समाज में प्रतिवर्ष तकरीबन २०० बच्चे अपनी माँ के हाथों मारे जाते हैं,तो कमोवेश भारत में भी मारे जाते होंगे
सिर्फ सन्तान नहीं स्त्री द्वारा पति या प्रेमी की भी हत्या की जा रही है| ४ जनवरी को पूर्णिया में भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी की निर्मम हत्या उन्हीं के आवास पर रूपम पाठक ने कर दिया था |संतकबीरनगर के ग्राम बरईपार में कुछ दिन पूर्व एक प्रेमिका ने अपने प्रेमी को मिट्टी का तेल उड़ेल कर जला दिया था |६ जुलाई,२०११ को कप्तानगंज[कुशीनगर] में संजू नामक स्त्री ने अपने पति की गला दबाकर हत्या कर दी थी |लन्दन में मई,२०१० को एक प्रेमिका ने प्रेमी की जीभ चुम्बन के बहाने काटकर अलग कर दिया था |प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की खबरें तो हर दूसरे-तीसरे दिन मिल जाती हैं |२१ मार्च २०१० को २३ वर्षीया नासर यूसुफ मोहम्मद अल एनेजी को अदालत ने मौत की सजा सुनाई |कारण-उसने अपने पति की दूसरी शादी में आग लगा दी थी,जिसमें ५७ साल की एक महिला और बच्चे मर गए थे |अदालत के अनुसार उसने लोगों को मारने के उद्देश्य से आग लगाया था|
इस तरह स्त्री के हिंसक रूप की कई तस्वीरें हमारे सामने आती रही हैं |समें अर्चना प्रसंग भी जुड़ गया |स्त्री के हिंसक रूप का प्रचार-प्रसार मीडिया ऐसे करता है,जैसे बदला ले रहा हो |जबकि ऐसी खबरें इक्का-दुक्का ही होती हैं |अर्चना और उसका प्रेमी दोनों पकड़े गए और कई दिनों तक अखबारों और मीडिया की सुर्खिया बन रहे हैं |सिर्फ एक ही अखबार के शीर्षक देखिए –प्रेमी संग मिल पति व बेटे का किया खून |पत्नी ही निकली कातिल |चन्दन तस्कर वीरपन्न से भी क्रूर निकली अर्चना |राज खुलने के भय से बेटे की भी की हत्या |जबकि उसी दिन कोने में तीन खबरें थीं –भूख से आहत दलित महिला ने तीन बेटियों सहित खुदखुशी की |सुनन्दा पुष्कर की मौत जहर से हुई –एम्स |मुंडेरवा थाना क्षेत्र के ग्राम नरियांव में पति शमीम ने शारीरिक संबंध न बनाने के कारण अपनी 22 वर्षीया पत्नी की धारदार हथियार से हत्या कर दी |
स्त्री की क्रूरता की खबरें यदा-कदा छपती हैं और पूरा समाज-संसार ,स्त्री-पुरूष ,बूढ़े-बच्चे ,अखबार –मीडिया भाले –बरछे लेकर उसे दौड़ा लेता हैं |थूक्का-फजीहत का सिलसिला लंबे अरसे तक चलता है |कारण भी स्पष्ट है स्त्री प्रकृति में दया-ममता प्रेम त्याग ,धैर्य का ही प्राचुर्य हम देखने के आदी रहे हैं |उसके खल रूप को हम बर्दाश्त नहीं कर पाते |राक्षसी भी खल हुई तो समाज की मर्यादा बचाने के लिए ईश्वर को उसको दंडित करना पड़ा |ताड़का ,सुरसा इत्यादि का वध इसका उदाहरण हैं |अपराधिनी को दंड मिलना ही चाहिए |पर क्या उन कारणों की तह तक जाना जरूरी नहीं जिसके कारण एक ममतामयी माँ ,एक पतिव्रता पत्नी ,एक सभ्य -सुसंस्कारित नागरिका,एक दया-माया करूना से भरी स्त्री क्रूर बन जाती है | आखिर वे कौन से मनोवैज्ञानिक दबाव हैं जो स्त्री को इस तरह क्रूर बना रहे हैं ?सोचने की बात है कि जिस माँ ने नौ महीने बच्चे को गर्भ में रखा,उसे अपना दूध पिलाया,उसी का रक्त क्या वह पी सकती है?जिस डायन की कल्पना हर देश में मौजूद है,वह भी अपने बच्चों को बख्श देती है,फिर कैसे कोई माँ अपने बच्चे को इस क्रूरता से मारेगी?माँ तो गुस्से में बच्चे को पीटने के बाद खुद रोने लगती है |बचपन में एक फिल्म देखी थी |नाम था –‘समाज को बदल डालो’|उस फिल्म में एक माँ पर आरोप है कि उसने अपने पांच[कम-ज्यादा हो सकते हैं]बच्चों को जहर खिलाकर मार डाला था| वह एक ऐसी औरत थी,जो अकेले समाज से लड़ते हार जाती है और भूख से तड़पते बच्चों को मुक्त करने के लिए भात में जहर सानकर खिला देती है |वह खुद भी खाती है,पर उसके प्राण नहीं निकलते और वह अपराधिनी मान ली जाती है | उस माँ की अंतर्वेदना की कल्पना करें |दूसरी तरफ वही समाज,जो उसकी इज्जत के बदले रोटी देने की बात कर रहा था |जो बच्चों के साथ भिखारियों से बदतर व्यवहार कर रहा था,उस माँ पर थूकने लगता है |समाज आज भी कहाँ बदला है?आज भी वह मजबूरी का सौदा करता है |ऐसे ही तो नहीं देह-व्यापार फल-फूल रहा है |अर्चना जेल में जिस तरह रो-रोकर पागल हुई जा रही है उससे साफ है कि वह अपने कुकृत्य को याद कर तड़प रही है |जाने किस विक्षिप्तता में उसने ऐसा किया ?प्रेमी का दबाव,पति से बदला या फिर और कोई वजह !साहसी तो वह नहीं मानी जा सकती वरना पति से अलग होकर बच्चे के साथ जीवन जी सकती थी |या पति से तलाक लेकर भी प्रेमी के साथ जा सकती थी |हत्या असंतुष्ट दांपत्य का विकल्प नहीं है|पता नहीं वह क्या था ,जिसके कारण उसने ऐसा किया ?सिर्फ देह की भूख,यौन-संबंध इसका कारण नहीं हो सकता |वह कोई अन्य सुरक्षित उपाय अपना सकती थी |इस समाज में जाने कितने अवैध-संबंध पर्दे से ढंके हैं |पुलिस वाले की पुत्री व भाभी होकर वह इतना तो जानती ही होगी कि हत्यारा अधिक समय तक कानून से नहीं बच सकता |फिर उसने हिंसा का रास्ता क्यों चुना ?क्या उसके पास अन्य कोई विकल्प नहीं था ?या फिर वही बात सत्य है कि आदमी के भीतर ही राक्षस व देवता दोनों हैं |कब कौन प्रबल हो जाए ,कोई नहीं जानता ? आदमी के दिमाग को पढ़ना इतना आसान नहीं है |पर उसपर विचार तो किया ही जा सकता है |भीड़ का अपना कोई विचार नहीं होता वह बस एक सिरे को पकड़कर मार-मार करने लगती है |अर्चना प्रसंग में यही हो रहा है |सभी एक स्वर में उसे अपराधिनी मान रहे हैं |प्राप्त सबूत उसके खिलाफ हैं भी |जेल में उसके घर वाले तक नहीं आ रहे हैं जबकि प्रेमी के घर वाले आ रहे हैं |एक ही अपराध लिंग-भेद के कारण समाज की मानसिकता को अलग-अलग ढंग से प्रभावित कर रहा है |अब अर्चना का फेसबुक चलाना ,जींस वाला फोटो अपलोड करना उसे विलासी व अय्यास बना रहा है |ऐसा ही होता है पकड़ा गया अपराधी ही अपराधी होता है |मैं यह नही कह रही कि अर्चना ने छोटा अपराध किया है और उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए |मेरा सिर्फ यही कना है  कि उन कारणों की खोज भी जरूरी है ,जिसने उसे ऐसा बना दिया | यौन वर्जना का चश्मा लगाकर स्त्री के अपराधों का मुकम्मल विश्लेषण नहीं किया जा सकता | अर्चना शादी के पाँच साल बाद तक किस दबाव में थी |प्रेमी तो अभी दस महीने पहले उसके जीवन में आया था |उसके पहले भी उनके बीच संबंध क्यों सामान्य नहीं थे ?क्यों सास-ननदें उसपर शक करती थीं ?क्यों बेटा पिता के पास ज्यादा रहता था ?क्यों अर्चना और उसके पति के बीच इतना गैप रहा कि दूसरे पुरूष का प्रवेश संभव हुआ ?क्या अर्चना शुरू से दुश्चरित्र थी ?अगर  उसे संतान से प्रेम नहीं था तो क्यों उसे नौ महीने गर्भ में रखा अपना दूध पिलाया| पाँच वर्ष  तक छोटे बच्चे को पालना आसान तो नहीं होता ?क्या वह विक्षिप्त थी ?या फिर किसी भयावह डिप्रेशन में जी रही थी |क्यों उसे ज्यों ही किसी का सहारा मिला वह पति की कैद से मुक्त होने के लिए छटपटाने लगी ?इस मुक्ति के बीच पति आया तो उसे मरवा दिया |बच्चा तो यूं ही शिकार हो गया |अगर अर्चना जन्मजात अपराधिनी नहीं है,शुरू से ही दुश्चरित्र नहीं है |अच्छे संसकारों में पली पढ़ी-लिखी युवती है तो उसको किसी मनोचिकत्सक को दिखाना जरूरी है तभी उसके अपराध के कारण का पता चल पाएगा |दंड तो उसे मिलना ही चाहिए क्योंकि उसने अत्या जैसे जघन्य अपराध में भागेदारी की है ,पर हत्या के सही कार्न की खोज न जाने कितनी स्त्रियॉं को ऐसे अपराध करने से रोकने में भूमिका निभा सकता है |मेरा विश्वास है कि अर्चना डिप्रेशन की शिकार थी जिसने उसकी सोचने-समझने की शक्ति छीन ली थी |उसका प्रेमी जरूर अपराधी प्रवृति का रहा होगा और उसे बरगलाता रहा होगा |विवेक शून्य होकर ही स्त्री ऐसे कदम उठा सकती है सामान्य परिस्थितियों में नहीं |
हंसिए से बच्चों को काट देने वाली सुमन की उम्र मात्र ३५ थी,पर बच्चे पांच थे |पति मजूर,वह भी हमेशा घर से बाहर| उसकी सबसे बड़ी बेटी बबली ११ वर्ष,अंजली १० वर्ष,अतुल ९,तन्नू ६ तथा सबसे छोटा अन्नू ५ वर्ष का था |सभी बच्चे पढ रहे थे |जाहिर है लड़ते-झगड़ते भी होंगे |उस दिन बच्चों के ना पढ़ने से बवाल हुआ |स्थिति बेकाबू हो जाने पर गुस्से से पागल हुई सुमन ने अन्नू-मन्नू को काट डाला |कह सकते हैं,उसे खुद पर काबू रखना चाहिए था |बच्चे तो शरारती होते ही हैं |समस्या सुमन के स्वास्थ्य की लगती है | बच्चों की परवरिश,शिक्षा की चिंता के साथ अर्थाभाव मानसिक दबाव बना रहा होगा |बढ़ती  मंहगाई में मात्र मजूरी से सुमन कैसे घर और बच्चों को सम्भाल रही होगी?ऊपर से पति का कोई सहयोग नहीं |निश्चित रूप से वह चिड़चिड़ी हो गयी होगी और बच्चों के ना पढ़ने पर आपा खो बैठी होगी |लेकिन इस तरह ..?कह सकते हैं कि जब संभाला नहीं जा रहा था,तो क्या जरूरत थी,इतने बच्चों की ?इस विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि अभी तक भारतीय स्त्रियों को कोख के बारे में निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है,उपर से जननी की सेहत की इस देश में घोर उपेक्षा होती है|सुमन शायद ही अपनी सेहत पर ध्यान दे पाती होगी?उस पर हमेशा मानसिक दबाव रहता होगा |खाना-कपड़ा,किताब-कापी,स्कूल-फीस,हारी-बीमारी पचासों समस्याएं |सुमन संतुलन खो बैठी |नहीं खोना चाहिए था,पर खो बैठी |उसकी मानसिक पीड़ा की कल्पना करें कि जिन बच्चों की वह जननी थी,उन्हीं की हत्यारिन बन बैठी | चंडीगढ़ की डिम्पल अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर आतंकित थी |परित्यक्ता होने के नाते उसके मन में यह भय बैठ गया था कि कहीं पति बच्चों को छीन न ले जाए |इसी असुरक्षा-भय के कारण वह मनोविकृति का शिकार हो गयी थी |उसे गम्भीर सीजोफ्रेनियाथा |एंड्रिया भी प्रसवोपरांत होने वाले पोस्टपार्टम डिप्रेशनका शिकार थी|यह बीमारी प्रसवोपरांत होने वाला एक विशेष प्रकार का अवसाद है,जिससे बिना इलाज निकलना मुश्किल होता है |बच्चों के प्रति अपराध करने वाली माएं किसी न किसी रूप से मनोविकृति की शिकार होती हैं |भारत में भी निश्चित रूप से ऐसी माएं मानसिक रोगी ही निकलेंगी,पर दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में स्त्री में मानसिक सेहत के प्रति उदासीनता का वातावरण है |कोई उनके मानसिक-स्वास्थ्य  के विषय में विचार करने को तैयार नहीं है|बच्चों से बुरा व्यवहार,उन्हें कैद रखने,सामान्य जीवन ना जीने देने या उन्हें मारकर स्वयं मर जाने के पीछे सामाजिक वा मनोवैज्ञानिक कारण है ,जिसे समझे बिना उनके अपराध की तह तक नहीं पहुँचा जा सकता और ना ही उन्हें अपराध करने से रोका जा सकता है |
दूसरे स्त्री-अपराधों के विषय में भी यही सच है |मंजू ने भी पति की हत्या जानबूझकर नहीं की थी |शराब व जुए की अपनी लत पूरी करने के लिए पति ने अंतिम बचे पुश्तैनी मकान को सस्ते में बेचकर रूपए किसी पट्टीदार के खाते में जमा कर दिया था | ऊपर से शराब के नशे में धुत्त मछली लेकर घर आया |पत्नी ने मछली पकाने से इंकार किया,तो झगड़ा शुरू होगया |पति अपना मफलर गले में लपेटकर उसे खिंच देने की धमकी देने लगा,तो नाराज पत्नी ने खुद मफलर कस दिया,जिससे पति की मौत हो गयी |सोचा जा सकता है कि मंजू ने किस डिप्रेशन में ऐसा किया होगा,पर वह गुनहगार तो है ही !कई बार अपनी ही बेटी को पति की हवस से बचाने के लिए औरत अपराध कर बैठती है |कई ऐसे उदाहरण हैं,जिन्हें उद्धृत करते हुए भी शर्म आती है |देहरादूनमें १३ अगस्त को दमयन्ती नामक स्त्री ने अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि जब वह तीन महीने अपने मायके में थी |आरोपी ने अपनी ही १६ साल की बेटी के साथ लगातार बलात्कार किया|निश्चित रूप से महिला ने संयम का परिचय देकर क़ानून का सहारा लिया,अन्यथा ऐसे हालत में पति की हत्या हो सकती थी |
आज युवा आत्महत्या कर रहे हैं ?लगभग हर रोज कोई न कोई औरत बच्चों सहित नदी में डूब रही हैं या रेल की पटरी पर कूद रही हैं |क्या जीना इतना मुश्किल होता जा रहा है?
आज का सत्य यही है कि अधिकांश आदमी डिप्रेशन में जी रहा है | तमाम दबाव उस पर हैं |बढ़ता प्रदूषण भी उनमें से एक है |एक शोध में बताया गया है कि आदमी तो आदमी,बंदर भी डिप्रेशन में हैं और लोगों को बेवजह काट रहे हैं |कारण पर्यावरण का नष्ट होना,पेड़-पौधों का कटते जाना |प्राकृतिक आहार की किल्लत से बंदर मनुष्यों का जूठन खा रहे हैं और उसी की तरह डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं |मेरे इस विवरण का यह अर्थ कदापि नहीं लिया जाना चाहिए कि मैं स्त्रियों  के अपराध को कम करके देख रही हूँ |मेरा सिर्फ यह कहना है कि किसी भी स्त्री को दोषी करार देने से पहले उन स्थितियों-परिस्थितियों पर भी विचार किया जाए,जो ममतामयी स्त्री को इस कदर निर्मम बना रही है |मेरे हिसाब से इन विकृतियों की जड़ में सामाजिक नैराश्य और प्रतिकूल स्थितियां हैं,जिनसे औरते अकेले जूझती हैं और डिप्रेशन में अमानवीय कदम उठा लेती हैं |पारिवारिक कारणों से हत्या-आत्महत्या करने वाली स्त्रियों पर अंगुली उठाने से पहले विवाह संस्था को कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए,जिसमें आज भी स्त्री चैन से नहीं जी पा रही है|जो ना तो उसे संरक्षण दे पा रही है,ना खुशी |जहाँ अराजकता का बोल-बाला है|स्त्री को किसी भी प्रकार का फैसला लेने का अधिकार नहीं, आजादी नहीं ,आराम नहीं, ना ही रात-दिन पीसने के बाद भी कोई यश !इतने दबाव वह नहीं झेल पाती,तो मनोरोगी हो जाती है | स्त्री-अपराधों का ज्यादातर मामला डिप्रेशन का ही है,जो स्त्री पर दुहरे-तीहरे दबाव के नाते आता है |परिवार-बच्चे,नात-रिश्तेदारी सबका भार स्त्री पर छोड़ना उसे बीमार बनाना ही है |
स्त्री अपने स्त्रीत्व का अपमान भी ज्यादा देर नहीं सह सकती |प्रेमी हो या पति जब वह उससे बेवफाई करता है या बार-बार उसे अपमानित करता है,उसकी कमियों का सबके सामने मखौल उड़ाता है,तो वह प्रतिशोध से भर जाती है |परिणाम किसी की जीभ कटती है,तो किसी की गर्दन |रूपम पाठक ने क्या यूँ ही भाजपा विधायक की हत्या कर दी थी ?सत्ता के नशे में स्त्रियों को यूज और थ्रोकरने वाले कभी-कभी स्त्री के प्रतिशोध में जल ही जाते हैं |स्त्री देह से दुर्बल होने के कारण अकेले पुरूष का सामना नहीं कर पाती,तो उस पुरूष को हथियार बनाती है,जो उसकी देह का कद्रदान[प्रेमी] है,फिर उस हथियार से अपना प्रतिशोध लेती है |अक्सर वह प्रेमी देह-सुख के लिए नहीं,अपने स्त्री होने को महसूसने के लिए बनाती है |प्रेमी उसके स्त्रीत्व को सम्मान देता है,उसको समझता है |क्यों पति यह नहीं कर पाता?क्यों घर की दाल समझकर उसे दलता ही रहता है?प्रेमी प्रेमिका को अपनी तरह इंसान मानता है,मनाने के लिए पैर तक छू लेता है,उसका अहं कभी उसके प्रेम पर हावी नहीं होता,पर वही प्रेमी पति बनते ही अहंकार से भर जाता है |अपनी गलती कभी नहीं मानता |पत्नी को हर बात में उसके पैर छूने पड़ते हैं |यदि पति प्रेमी बन जाए,तो ना जाने कितने स्त्री-अपराध बंद हो जाएँ |पर पति होने के अहंकार में वह लगातार स्त्री को प्रताड़ित व जलील करता रहता है,इसलिए उसके कमजोर पड़ते ही स्त्री उस पर हावी हो जाती है या फिर अपराध का रास्ता अख्तियार कर लेती है | ये सारी बातें मैं अपराधिनी मान ली गयी कई औरतों से बात करके जान पाई हूँ | फूलन देवी को ही लें,क्या वह बुरी स्त्री थी ?अपने प्रारम्भिक दिनों में बिना मर्जी की शादी और कई बार यौन-उत्पीड़न का शिकार होने के बाद ही वह डाकू बनी |१९८१ में उसने अपने साथी डकैतों की मदद से उच्च-जातियों के गाँव में २० से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी |उत्तरी और मध्य प्रदेश के उच्च-जाति वाले ही उसकी हिंसा के शिकार हुए|अगर वह बुरी होती,तो भारत सरकार से समझौता करके ११ साल जेल की सजा नहीं काटती और जेल से रिहा होकर सांसद नहीं चुनी जाती |फूलन ने जाति-व्यवस्था के खिलाफ जो विरोध किया,उसने उसे समाज के दबे-कुचले लोगों के अधिकारों का प्रतीक बना दिया |तभी तो अन्तरराष्ट्रीय महिला-दिवस के अवसर पर टाईममैगजीन ने इतिहास की सबसे विद्रोही महिलाओंकी सूची में फूलन देवी को चौथे नम्बर पर रखा |उसका कहना है कि भारतीय ग़रीबों के संघर्ष को स्वर देने वाली और इस आधुनिक राष्ट्र के सबसे दुर्दांत अपराधी के रूप में फूलन को याद किया जाएगा |
 इन प्रसंगों को एक साथ रखने का कारण मीडिया द्वारा स्त्री के खल रूप का व्यापक प्रचार है |धारावाहिकों में सजी-संवरी औरतों के षड्यंत्र,उनकी आँखों व भौंहों का संचालन,टेढ़ी मुस्कान को देखकर कोफ़्त होने लगी है कि क्या स्त्रियों के पास इन सबके अलावा और कोई काम नहीं ?कहीं यह सब स्त्री को पीछे खींचने की सोची-समझी साजिश तो नहीं ?स्त्री को इन्हीं सब में उलझाकर रचनात्मक होने या विविध क्षेत्रों में पुरूषों के समकक्ष खड़ा होने से रोका तो नहीं जा रहा ?यह सच है कि स्त्री भी खल होती रही है और आगे भी हो सकती है,पर इतनी भी नहीं कि उसके सारे स्त्री-गुण तिरोहित हो जाएँ |पुरूष-मानसिकता का अनुकरण करने वाली स्त्रियाँ ही खलनायिका होती हैं और यह पुरुषप्रधान व्यवस्था के कारण है |इसलिए स्त्रियों को एकजुट होकर स्त्री के खल रूप के प्रचार-प्रसार को रोकना चाहिए|इस काम में वे पुरूष भी उनके साथ होंगे,जो परिवार-समाज के रिश्तों में लोकतंत्र के समर्थक हैं |सरकार को स्त्रियों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के लिए योजनाएं बनानी आवश्यक है |स्त्रियों को भी अपने सेहत की उपेक्षा छोड़नी होगी,ताकि वे अच्छी माँ व एक स्वस्थ नागरिक बन सकें |