Thursday 20 December 2012

योनि मात्र रह गई रे मानवी

दिल्ली में हुए 'रेप-कांड'से मन बहुत विचलित है |वैसे तो लगभग प्रतिदिन इस तरह की घटनाएँ सुनने -पढ़ने  को मिल जाती हैं,पर इस बार तो बलात्कारियों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी हैं |अक्सर मैं सोचती हूँ कि क्या ऐसे पुरूष सामान्य हैं ?वह कौन-सी मानसिक ग्रंथि हैं ,जो उन्हें इस तरह का कुकर्म करने को उकसाती है |निश्चित रूप से ऐसे मनोरोगी अपनी माँ तक का सम्मान नहीं करते,उससे प्यार नहीं करते |हो सकता है किसी कारण से उससे नफरत करते हों |कभी एक शोध पढ़ा था,जिसमें कई बड़े हत्यारों का मानसिक परीक्षण किया गया था और रिजल्ट में यही निकला था कि वे बचपन में अपनी माँ की किसी बात से नाराज थे,उसे प्रकट नहीं कर पाए,तो वह धीरे-धीरे एक ग्रंथि बन गई और ज्यों ही उन्हें अवसर मिला ,उन्होंने हत्या जैसे अपराध तक कर डाले |
किसी स्त्री से बलात्कार करना ,उसके स्त्री-अंग को क्षति पहुँचाना स्वस्थ मानसिकता नहीं हो सकती |जिस अंग-विशेष से  पुरूष का अस्तित्व धरती पर आकार लेता है,उसी से इतनी नफरत !छल-बल से उसे पाने की कोशिश,फिर उसकी छीछालेदर !कभी उसमें पत्थर भरना,कभी ताले लगाना,कभी रॉड इत्यादि खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल ,कभी दोस्तों के साथ मिलकर सामूहिक बलात्कार !उफ़!नफरत की कोई सीमा है !
स्त्री से बलात्कार की कोई उमर सीमा भी निर्धारित नहीं है |६ माह की बच्ची से लेकर ६० वर्ष की वृद्धा तक का बलात्कार होता रहता है |कपड़ों व आजादी को इसका कारक बताने वालों को बता दूँ कि १८ दिसम्बर को कम्पेयर-गंज में मात्र १८ माह की बच्ची के साथ २५ वर्ष के विवाहित युवक ने दुराचर किया है|गाँव-कस्बों में प्रतिदिन ऐसी भोली-भाली बच्चियों के साथ दुराचार होता है,जो ना तो मार्डन  कपड़े पहनती हैं,ना उस हद तक आजाद हैं |खेत-खलिहानों में काम करने वाली ,मजदूरी करने वाली,विकलांग-बीमार,मजबूर ,गरीब ,पागल किस स्त्री के साथ दुराचार नहीं होता |महानगरों में उच्च-शिक्षा या नौकरी करने वाली स्त्रियाँ आते-जाते या कार्यस्थल पर कितनी छेड़छाड़,यौन-जनित टिप्पणियाँ सुनती हैं ,यह वही जानती हैं |कहाँ-कहाँ लड़े,किस-किसके खिलाफ रपट करें |पुरूषों की मानसिकता बदलने का नाम ही नहीं ले रही है |अपढ़ ही नहीं पढ़े-लिखे भी स्त्री को वस्तु मात्र समझ रहे हैं |आजकल के फ़िल्मी गानों और डायलाग्स सुनिए |मन क्षोभ से भर जाता है |पर वैसी ही फ़िल्में और गाने सुपर हिट हो रहे हैं |बच्चे उन्हें दुहरा रहे हैं |शराब पीकर दबंगई करना हीरोपन  है||'मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त',मैं तंदूरी मुर्गी हूँ अल्कोहल से गटक लो 'चिकनी चमेली पऊवा चढाकर आई ''हलकट जवानी'इत्यादि| क्या यही है आज की स्त्री !पुरूषों को बहकाने वाली आईटम गर्ल |अभिनेत्रियाँ तो अपने आईटम से मदों का मन बहका कर,करोणों कमाकर अपने सुरक्षित महलों में चली जाती हैं और खामियाजा भुगतती हैं कैरियर और रोटी के लिए संघर्ष करती स्त्रियाँ या असहाय,मजबूर बच्चियाँ |क्या फिल्म बनाने वालों की समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ?
अक्सर सामूहिक रूप से बलात्कार करने वाले शराब पीकर मत्त होते हैं और  नीली फिल्मों के आदी होते हैं |ये दोनों ही चीजें इंसान को पिशाच बनाती हैं,स्त्री को योनि मात्र मे बदल देती हैं |क्या इन दोनों चीजों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार कुछ कर रही है ?बलात्कारियों को कभी बड़े लोगों का संरक्षण मिल जाता है तो कभी पुलिस की ढिलाई का लाभ मिल जाता है |क़ानून भी उन्हें ऐसी सजा नहीं देता कि दूसरे दरिंदों के मन में डर पैदा हो|क्या सरकार,पुलिस,कानून स्त्री की इस दुर्दशा का जिम्मेदार नहीं |स्त्री-सशक्तिकरण का आलाप करने मात्र से क्या स्त्री सशक्त हो जाएगी ?कई प्रश्न है,जिसका जवाब खोजना होगा | आज तो सुमित्रानंदन पन्त जी का हाहाकार वातावरण में गूंज रहा है -योनि मात्र रह गई रे मानवी |   

Sunday 16 December 2012

सोशल नेटवर्किंग साइट्स अर्थात सामाजिक संपर्क सूत्र


सामाजिक सम्पर्क सूत्रों की परिकल्पना कहीं ना कहीं भारतीय संस्कृति के ‘विश्व-बन्धुत्व’व ‘वसुधैव कुटुम्बकम’की अवधारणा के करीब है |इन सम्पर्क-सूत्रों ने पूरे विश्व को एक परिवार में बदल डाला है और इस तरह हमारी सामाजिकता का विस्तार किया है |इसमें अधिक से अधिक लोगों के लिए जगह है |’नेट’ कम्प्यूटरों का एक नेटवर्क है,जो व्यक्ति को एक ऐसे विश्व में विचरण का मार्ग उपलब्ध करता है जहाँ उसके लिए कम्प्यूटरों के भंडारित सूचना-खजानों तक पहुँचने के द्वार अचानक खुल जाते हैं |ई-मेल भेजना या उन्हें प्राप्त करना,डेटा फाइल्स प्राप्त करना,एक साथ कई लोगों के साथ फैंटेसी खेल खेलना,स्वतंत्र रूप से उपलब्ध सरकारी दस्तावेज,वैज्ञानिक आँकड़े,शौकिया लोगों की सूची,व्यापारिक और वैयक्तिक विज्ञापन,मौसम या  शेयर बाजार संबंधी आंकड़े सम्बन्धी जानकारी ‘नेट’ हमें उपलब्ध करता है |इस पर हम पैसों से  या फ्री जानकारियां उपलब्ध करा सकते हैं या कर सकते हैं |जाति-धर्म,लिंग,रंग,राष्ट्र इत्यादि विभेदों को जाने बिना लोगों से मिलना,बातें करना भी इस पर संभव है |एक तरह से यह समाजवाद और सार्वभौमिकता को प्रकट करता है |यह एक ऐसा विशाल,विस्तृत,लगातार फैलते जा रहे महानगर की तरह है,जहाँ जरूरत की हर वस्तु उपलब्ध है |कुछ तो ऐसी भी वस्तुएँ हैं,जो अकल्पित व अदृष्ट हैं |कोई उग्र,तो कोई शालीन,पर सभी नयी और रोमांचक |अपने आप में इसे एक पूरा विश्व कह सकते हैं ,जिसमें स्वेच्छा से विचरण की हमें आजादी है |इसमें हम शेक्सपीयर की कविताओं को पढ़ सकते है तो मनचाहे पेंटिंग भी देख सकते हैं |कम लागत और समय में विश्व की हर बात जान सकते हैं |साहित्य-संगीत,कला,विज्ञान ही नहीं दूसरे तमाम ज्ञानों की भी आपसी साझेदारी कर सकते हैं |विचारों के आदान-प्रदान का यह बेहतरीन माध्यम  है |इसके माध्यम से संसार के किसी भी महत्वपूर्ण मसलें में अपनी उपस्थिति हम दर्ज करा सकते हैं |आज हमारी खूबियां या विशेष योग्यताएं पद-धन या पहुँच की मुहताज नहीं |नेट के माध्यम से हम सहजता से उन्हें पूरे विश्व के सामने ला सकते हैं |आर्थिक,व्यापारिक सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक,आध्यात्मिक सभी प्रकार के उद्देश्यों की आपूर्ति यहाँ संभव है |सभी प्रकार के भेदभावों से उपर उठकर सिर्फ मनुष्य रूप में अर्थात मानवीय भावना से प्रेरित होकर मानवाधिकारों की रक्षा में भी इसकी भूमिका है |इसके माध्यम से पर्यावरण सुरक्षा,युद्ध का विरोध,शांति का समर्थन,विश्व-बन्धुत्व की भावना का विस्तार ,जरूरतमंदों की सहायता,संस्कृति  का आदान-प्रदान इत्यादि क्या कुछ नहीं किया जा सकता?एक तरह से आज के मानव के लिए यह वरदान है |
पर इस वरदान का एक स्याह पक्ष भी है और वह है ‘साईवर क्राईम’|इसमें किसी के निजी फोटो का गलत इस्तेमाल  कर उसे आर्थिक,सामाजिक,शारीरिक हानि पहुँचाई जाती है |प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर कीचड़ उछालकर उसकी प्रतिष्ठा से आसानी से खिलवाड़ किया जाता है|साईबर टेररिज्म,साईबर वॉर,हैकिंग,पासवर्ड ब्रेक,ईमेल स्फूनिंग,पासवर्ड कोपिंग और बड़े स्तर पर वायरस व वामर्स डालकर कम्प्यूटर को नुकसान पहुँचाना इस क्राईम के हथियार हैं |इसके अतिरिक्त भी १५२ से अधिक तरीके से यह क्राईम किया जा रहा है |
अफ़सोस की बात है कि एक बड़े उद्देश्य के लिए  शुरू किए गए संपर्क-सूत्र अपराधी प्रवृति के लोगों के हाथों में पड़कर विनाशकारी बन रहे हैं |इनके जरिए मानसिक विकृतियों के शिकार,यौन-कुंठित लोग अपनी विकृतियाँ परोस रहे हैं ,जिसके कारण बच्चों और किशोरों के लिए ये अभिशाप सिद्ध हो रहे है|स्वभाव से जिज्ञासु होने के कारण वे पोर्न-साईट्स खोलते हैं और उसके आदी हो जाते हैं | फिर गलत प्रवृति के लोग इन बच्चों को अपनी यौन-कुंठा का शिकार बनाते हैं और उनका हर तरह से शोषण करते हैं |जिसका परिणाम यह होता है कि वे चिडचिडे,कुंठित और हिंसक हो जाते हैं |उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता |उनका शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक,चारित्रिक,सामजिक विकास रूक होता है|वे ज्यादा समय ‘नेट’ से चिपके रहते हैं |बोलने में हकलाते हैं और तनाव के शिकार हो जाते हैं |किसी से मिलना-जुलना पसंद नहीं करते,ना ही खेल-कूद में रूचि लेते हैं | ये लक्षण बाद में उन्हें आत्मग्लानि से आत्मघात तक ले जाती है | युवा व वृद्ध भी नेट के आदी होने पर रिश्तेदारों व मित्रों से कटते जाते हैं |तमाम तरह के शारीरिक-मानसिक बीमारियों की चपेट में आ जाते है| इस तरह वे सामाजिक होने के वजाय असामाजिक होते जाते हैं |समाज में निरंतर बढ़ रहे यौन-अपराध व हिंसा में भी ‘नेट’की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता |
इस तरह सोशल नेटवर्किंग साईट्स गलत प्रकृति के लोगों के हाथों में पड़कर अपना मूल उद्देश्य खो बैठा है |यदि जल्द ही इसके संस्थापकों और विश्व-समाज व सरकार द्वारा इसकी बुराईयों की रोकथाम नहीं की गई,इसे बेलगाम होने से नहीं रोका गया,तो इसे भस्मासुर बनने से कोई नहीं रोक सकेगा,फिर ना ये समाज बचेगा,ना ही भविष्य |