Friday 2 September 2011

दोषी कौन ?


जून महीने में गोरखपुर के अख़बारों में शिखा उर्फ पूजा हत्याकांड प्रमुखता से छपा इस हत्याकांड में कई बातें गौरतलब थीं -
१ -जिस लड़की की हत्या हुई ,वह शिखा नहीं, सोनभद्र की पूजा थी
२ -शिखा ने पूजा की हत्या का षड्यंत्र अपने प्रेमी दीपू यादव के साथ मिलकर किया ,दीपू का ट्रकचालक लल्ला व उसके मित्र सुमित ने भी इसमें उनका साथ दिया |
३ -हत्या के बाद शिखा ने पूजा के शव को अपने कपड़े पहनाएँ,ताकि उसके घर वाले उसे मरा हुआ मान लें |
४ -लल्ला और सुमित ने पूजा के शव को विकृत कर दिया, ताकि वह  दुर्घटना का शिकार लगे |
५ -पूजा के चयन के पीछे उसकी कद -काठी का शिखा जैसा होना था |
६ -पूजा वर्षों से लल्ला व दूसरे ट्रक चालकों के संपर्क में थी, क्योंकि अपने बेटे की परवरिश के लिए उसे पैसों की जरूरत थी |वह विधवा थी तथा ससुराल व मायके से उसे कोई मदद नहीं मिल रही थी |
                इस घटना ने जनमानस को हिला दिया |दीपू के पिता चन्द्रभान अपने पुत्र की करनी से शर्मिंदा हुए ,तो शिखा के पिता उसे अपनी पुत्री मानने से ही इंकार रहे हैं |पूजा के पिता होरीलाल बेटी की हत्या से दुखी हैं और सूद के पैसे से उसका ब्रह्मभोज करने की बात कर रहे हैं गौर करें कि पूजा अपने ७ वर्ष के पुत्र के साथ पटबंध में एक प्राथमिक स्कूल के बगल में किराये के मकान में रहती थी और लल्ला व अन्य चालकों का मन बहलाकर जीवन चला रही थी |आश्चर्य तो यह है कि जो पिता आज न्याय की गुहार लगा रहे हैं ,यह सोच कर  खुश रहा करते थे कि बेटी मेहनत -मजूरी करके जीवन चला रही है |पर कैसी मजूरी यह जानने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की थी |दीपू के पिता इस बात से इंकार कर  रहे हैं कि उन्हें दीपू और शिखा के अफेयर की जानकारी थी ,जबकि एक वर्ष पूर्व शिखा ने जहर खा कर  उन्हीं के घर में शरण लिया था और उनकी पत्नी ने ही उसे अस्पताल पहुँचाया था |इस हत्याकांड में सबसे दुखद पक्ष तो पूजा का है.बचपन के वह खौलते तेल में गिरकर जल गयी, फिर उम्र भर जलती ही रही| विवाह के चार साल बाद बाद ही पति -सुख से वंचित हो गयी |किसी ने भी उसकी मदद नहीं की |प्रेमी के नाम पर लल्ला मिला ,जिसने वर्षों उसका उपभोग किया -करवाया और अंततः उसकी मौत का सौदा भी कर लिया |तड़पा-तड़पा कर उसकी देह से आत्मा को निकाला गया |उस पर भी बस कहाँ हुआ? उसके शव को पहले विकृत किया गया ,फिर जाँच के नाम पर २ -२ बार चीर-फाड़ हुई | और दूसरे के नाम से दाह-संस्कार हुआ|आखिर उसका अपराध क्या था ?गरीब होना कि स्त्री होना ! क्यों ऐसी स्त्रियों के पास देह बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं ?हजारों-हजार पूजाएं इस देश में ऐसे ही नर्क में जी रही हैं और कुतिया की  मौत मर रही हैं |अक्सर हाइवे के सूनसान जगहों पर विकृत मादा -देह मिलती है ,जिनकी शिनाख्त तक नहीं हो पाती |चंद रुपयों के लिए रेलवे स्टेशनों व शहर के कोने -अतरों  में मोल -भाव करती औरतों को देखकर जहाँ वितृष्णा होती हैं ,वहीं  मजबूरी को खरीदने वालों को गोली से उड़ा देने को जी चाहता है |
            अब शिखा की बात करें ,आज पिता, परिवार -समाज सब उस पर थूक रहे हैं कि अपना प्यार पाने के लिए उसने एक निर्दोष लड़की की बलि ले ली |शिखा रो -रोकर फरियाद कर रही है कि माता -पिता को बदनामी से बचाने और उनको दुःख न पहुँचाने की मंशा ने उसे ऐसा करने को मजबूर किया ,तो क्या शिखा के पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था?क्या उसके माता -पिता किसी भी तरह उसके विवाह को राजी नहीं थे ?ऐसा तो हो नहीं सकता कि एक वर्ष पहले ,जब इस प्रेम में शिखा ने विष खा लिया था ,तो उसके अभिभावकों को पता नहीं चला होगा |फिर क्यों उन्होंने उनके प्रेम को स्वीकृति नहीं दी ?क्या ऐसा करके वे इस हादसे को होने से नहीं रोक सकते थे?लड़की को दोषी ठहरा देना सबसे आसान काम है ,इसलिए शिखा दोषी है,पर विचार करने की जरूरत है कि आखिर असली दोषी कौन है ?

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