Wednesday 10 June 2020

कितनी सजा मिली मुझे कितना क़ुसूर था


--प्रभा ...तुम मेरे घर कम आया करो ...आओ भी तो ज्यादा वक्त मेरी पत्नी के साथ गुजारो ....|’
अपने प्राध्यापक रमेशचन्द्र की यह बात सुनकर प्रभा निष्प्रभ हो उठी |अभी थोड़ी देर पहले दरवाजा खोलते समय उनकी पत्नी ने भी बड़ा अभद्र व्यवहार किया था |वह कुछ समझ नहीं पाई थी और अब सर भी.....|उसे लगा किसी ने उसे गाली दी हो ...उसके चरित्र पर कीचड़ उछाला हो और कहा हो—'तुम बदनामी का कारक हो ...तुम इस योग्य नहीं कि किसी शरीफ घर में आ-जा सको |’
उसकी आँखों में आंसू आ गए |वह तो यहाँ अपना शोध-कार्य करने आती है |पहले तो इस घर में उसका बहुत सम्मान था ,एकाएक क्या हो गया |
उसे रोता देख वे उसे समझाने लगेमैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा कि तुम रो पड़ी |तुम ही बताओ सारी बातें स्पष्ट कह देने में क्या बुराई है ?तुम्हें बस थोड़ी सी चालाकी ही तो करनी है |दरअसल मेरी पत्नी को हमारे संबंध में थोड़ी गलतफ़हमी हो गयी है |तुम्हारे आने से मेरे घर में एक तनाव पैदा हो जाता है |
पर क्यों सर ?आपके घर तो बहुत-सी लड़कियां आती हैं |
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हाँ यह सच है कि मेरे घर लड़कियों का आना-जाना लगा रहता है पर उनके आने से मेरी पत्नी तनावग्रस्त नहीं होती पर तुम्हारे आते ही ...|
पर ऐसा क्यों ?मेरा अपराध क्या है ?मैं उनको पूरा सम्मान देती हूँ |जहां तक मुझे ज्ञात है कि मैंने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा |
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सच कहती हो तुम ...इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं पर एक अपराध है तुम्हारा...कहते-कहते वे सहसा चुप हो गए |प्रभा ने अपनी आँसू भरी आँखें उठाकर उनकी तरफ देखा तो उनके अधरों पर मधुर मुस्कान थी |वे मीठी नजरों से उसे निहार रहे थे |
उसे कुछ अटपटा-सा लगा |
अपनी बात पूरी कीजिए सर उसका मन आहत था |
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यही कि तुम बहुत सुंदर हो ...|
जी ...।वह सकपका गयी |अब उसकी समझ में कुछ-कुछ आने लगा था |उसने मन ही मन कहा सुंदरता नहीं ...गरीब होना मेरा अपराध है |
वे आगे बोले अपने हृदय की बात तुमसे कहता हूँ |तुम्हें देखते ही मेरे मन में कमजोरी आ जाती है |चाहता हूँ तुम हमेशा मेरी आँखों के सामने रहो |किसी तरह खुद को संभालता हूँ पर दुबारा तुम्हें देखकर फिर कमजोर पड़ जाता हूँ |तुम्हारे मन की बात मैं नहीं जानता पर मेरी हालत यही है। मेरी पत्नी जो वर्षों से मेरे करीब रही है ,मेरी इस कमजोरी को जान गयी है ,इसीलिए तुम्हें सह नहीं पा रही ....मीन माइंडेड है न इसलिए ...|
प्रभा पहली बार उनके मुंह से इस तरह की बात सुन रही थी |उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वे उसके प्रति इस तरह का भाव रखते हैं |उनकी पत्नी का क्या दोष ?अगर वह भी उनकी जगह होती तो ऐसा ही करती |कोई पत्नी यह कैसे बर्दास्त कर सकती है कि उसका अधेड़ पति किसी युवा लड़की के प्रेम में इस तरह गिरफ्त हो जाए कि अंतरंग क्षणों में भी उसी का नाम पुकारे |
ये उसी स्त्री को मीन माइंडेड कह रहे हैं |मैं तो इन्हें महान पुरूष समझती थी ...मेरी पिता की उम्र के तो नहीं पर बड़े भाई के उम्र के तो जरूर ही हैं ...फिर गुरू हैं ...शिक्षक हैं ...चारों तरफ चरित्रवान कहे जाते हैं |जब इनके मन में मेरे लिए कमजोरी आ गयी तो फिर अन्य साधारण पुरूषों का क्या होगा ...?इतनी भी सुंदर नहीं हूँ मैं |
वे फिर बोले-मैं शर्मिंदा हूँ ...मेरी पत्नी थोड़ी एबनार्मल है ।तुमसे बुरा व्यवहार कर सकती है ,जो मैं नहीं सह सकता क्योंकि मैं तुमसे बहुत ज्यादा .....|बात अधूरेपन में भी पूरी थी |
प्रभा ने धीरे से जवाब दिया आप बेकार परेशान न हों सर |आपकी पत्नी का तनाव बिलकुल वाजिब है ...वे नार्मल हैं ...दोष मेरा ही होगा |न जाने मेरे किस आचरण से आपके मन में मेरे प्रति इस प्रकार का भाव ...इस तरह का आकर्षण पैदा हुआ |
वे मधुर मुस्कान बिखेरते हुए बोले-तुम जब पहली बार कालेज में मुझसे मिलने मेरे विभाग में आई थी ,तभी से मुझे लगता है कि तुम्हारी आँखों में मेरे लिए खुछ खास है |तुम्हारी आँखें बहुत सुंदर हैं और बहुत बोलती हैं |मैंने इन पर एक गीत लिखा है ...सुनोगी ....|
वह सोच रही थी कि दूसरे कमरे में उनकी पत्नी हैं और अगर वे सुनने पर आमदा हों तो ड्राइंगरूम की कुछ बातें तो सुन ही सकती हैं पर सर तो बड़े निडर होकर बतियाए जा रहे थे |बीच-बीच में उठकर वे पत्नी के कमरे में जाते थे।पता नहीं उन्हें धमकाते थे या अवसाद की दवा देते थे या फिर क्या करते थे कि वे एक बार भी इधर नहीं आई थीं |प्रभा को बड़ा अपराध-बोध सा हो रहा था |किसी स्त्री के दुख का कारण वह अनजाने में ही बन गयी थी |
उसे सर पर बहुत गुस्सा आ रहा था |उसे पता भी नहीं चला और उसकी आँखें उनसे जाने क्या-क्या कहती रहीं |वह तो उनकी विद्वता से प्रभावित थी |उन्होंने जिस तरह से उसे आगे बढ़ने-पढ़ने व आत्मनिर्भर होने की सलाह दी थी उससे वह उन्हें अपना गुरू,हितैषी ,मित्र सब मानने लगी थी |अपने परिवार से मिलाते समय उन्होंने उसे कितना मान दिया था |उनकी पत्नी अपने परिवार के साथ उसे भी रसोईघर में ही बैठाकर राजमा-चावल और अन्य स्वादिष्ट भोजन खिलाती थी |सर जब घर पर नहीं होते थे | सभी एक परिवार की तरह ही एक साथ लेटते-बैठते या खेलते थे |सर की युवा बेटी और किशोर बेटा भी मुझसे हिले-मिले थे|सर के रोमांस ने सब चौपट कर दिया |उनकी पत्नी की निगाह से मुझे गिरा दिया |उसे याद है कि एक बार उनकी पत्नी ने सर के चरित्र की प्रशंसा करते हुए कहा था कि कोई अप्सरा आकर उनके पास लेट जाए तो भी वे विचलित नहीं हो सकते |उनकी वह गर्वोक्ति आज चूर-चूर हो गयी थी |
उनसे ज्यादा वह आहत थी |सर की कमजोरी की बात से उसे बहुत दुख हुआ था |उसने सोच लिया कि अब वह उनके घर नहीं आएगी |शोध के कार्य कालेज में ही दिखला लिया करेगी |
घर लौटते वक्त वह सोच रही थी कि –"स्त्री-पुरूष के बीच प्रेम-संबंध के अलावा क्या और किसी संबंध की गुंजाइश नहीं है ?पुरूष अपनी कमजोरी ,अपने स्वार्थ के कारण एक स्त्री के मन में दूसरी स्त्री के प्रति ईर्ष्या व घृणा के बीज बो देता है और ऊपर से स्त्री को ही ईर्ष्यालू,मीन-माइंडेड,एबनार्मल कहता है |एक स्त्री इसलिए दोषी कि पति की इच्छा का सम्मान करते हुए दूसरी स्त्री को नहीं स्वीकारती ,दूसरी इसलिए दोषी कि वह सुंदर है ,उसकी आँखें बहुत बोलती हैं ,जिसका मनचाहा अर्थ लगाया जा सकता है यानी इसमें पुरूष का कोई दोष नहीं।दोष दोनों स्त्रियों में ही है।उसके बाद कई हफ्ते सर से उसकी मुलाक़ात नहीं हुई |वह अपना शोध पूरा करने में लग गयी |उस दिन उसने विभाग में ही सर को शोध का एक अध्याय दिखाया तो उन्होंने उसे किनारे रख दिया और बोले-घर पर इतमीनान से देखेंगे |आज दुपहरी को घर आ जाना ।पत्नी एक रिश्तेदारी में बच्चों के साथ गयी हैं |काफी मैं ही बनाकर पिलाऊंगा |बहुत अच्छी काफी बनाता हूँ |वे कितने इतमीनान में थे कि वह उनके बुलावे पर दौड़ी चली आएगी| यानी वे उसे भी अपनी तरह आसक्त मान चुके थे।बिना उसकी हाँ सुने उसके दिल की बात जाने |जैसे वे ही उसे सुअवसर दे रहे हों ।पुरुष का अभिमान कितना बड़ा होता है।
वह उन्हें कुछ कह नहीं पाई ,न मना ही कर पाई ।
पर उनकी पत्नी की अनुपस्थिति में वह उनके घर कैसे चली जाए ?सर में इतना साहस तो नहीं कि उसके साथ जबर्दस्ती कुछ करें पर वे अपनी बातों के चक्रव्यूह में उसे फंसा तो  सकते ही हैं |न जाने पर उनके नाराज हो जाने का खतरा था |उसके शोध-कार्य में विघ्न आ सकता था |
फिर भी वह नहीं गयी |
अगले दिन वह डरते-डरते विभाग में उनसे मिली तो वे बहुत आहत दिखे |एकांत पाकर बोले-तुमने अच्छा नहीं किया |तुमने अपना बहुत बड़ा नुकसान किया |मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या नहीं रखा था |तुम्हारा जीवन खुशियों से भर जाता|तुम्हारे सारे अभाव दूर हो जाते ...पर तुम नहीं आई तुम्हारा भाग्य खराब निकला।मैं नाराज नहीं हूँ तुमसे ...तुम्हारा काम भी पूरा होगा |उसकी चिंता न करना पर अब मेरे घर कभी मत आना |
इतना कहते हुए वे अपने केबिन से निकलकर क्लास में चले गए |

प्रभा एक बार फिर निष्प्रभ थी |

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