Sunday 6 November 2011

ये कैसा प्रेम ?


रात के बारह बजे थे |अभी –अभी बड़ी मुश्किल से उसकी आँखें लगी थीं |तभी ट्रिन...ट्रिन ..ट्रिन लगातार फोन की घंटी बजने लगी |उसने घड़ी की तरफ देखा और झुंझलाकर उठ बैठी|
-उफ़, इतनी रात को कौन हो सकता है?अपने सभी परिचितों,मित्रों व रिश्तेदारों को रात दस बजे के बाद फोन करने को वह मना कर चुकी थी |कहीं कोई इमरजेंसी तो नहीं |सोचते हुए उसने फोन उठा लिया |
-हैलो ,कौन बोल रहा है ?
पहचानो ....|कोई लार टपकाऊ आवाज थी |उसका मन घिना गया |
-नहीं पहचान रही ,नाम बताएँ...|
अब ये हाल हो गया कि आवाज नहीं पहचान पा रही हो |लगता है बहुत सारे फोन आते हैं आशिकों के ...|
-नाम बताएँ...वरना फोन रखती हूँ ...इतनी रात को पहचान कराने के लिए फोन किया है |
अरे..रे .. नहीं डियर ऐसा गजब नहीं करना ...मैं हूँ इंद्र ...|
-आप सर..इतनी रात को ...क्या बात है ?
कुछ नहीं ..अकेला था |पत्नी मायके गयी हैं |नींद नहीं आ रही थी |सोचा तुम भी तो अकेली रहती हो |तुमसे ही बात करके मन बहलाऊँ |क्या कर रही थी ?
आवाज से टप-टप कामुकता टपक रही थी |उसका जी चाहा,कसकर उन्हें झाड़ दे |वैसे तो बड़े आदर्शवादी बनते हैं,पूरे सत्यवान !पर एक रात भी औरत के बिना नहीं गुजार पा रहे |पत्नी नहीं तो दूसरी औरत ही सही |दूसरी औरत भी शिक्षित ,सम्भ्रांत,सुंदर और जवान हो,साथ ही फूटी खर्च या बदनामी का डर भी ना हो |वाह रे आदर्श ! 
पर वह चुप रहकर वह गुस्सा पीती रही |कितनों को दुश्मन बनाया जाए |
क्या हुआ ,कुछ बोल नहीं रही |आई लव यू |
-क्या यह बात आप सबके सामने कह सकते हैं ?
प्रेम को पोस्टर बनाना जरूरी तो नहीं |यह दो लोगों के बीच की बात है |मन की बात है | देखो ,हर पुरुष को पत्नी के अलावा एक ऐसी प्रेयसी की चाहत होती है ,जो उसके मन को झंकृत करती रहे |तुम मेरी जीवन-प्राण हो |मुझे जीवंत करने वाली ,ऊंचाईयों तक पहुँचाने वाली प्रेयसी |
-पर मैं आपसे प्रेम नहीं करती |आप एक विवाहित पुरूष हैं |आप कैसे किसी दूसरी स्त्री से प्रेम कर सकते हैं?
क्यों नहीं कर सकता ?प्रेम कोई बंधन नहीं मानता |
-पर प्रेम किसी का हक भी नहीं छीनता |
यह आदर्शवादी बातें है,सच्चाई नहीं |फिर मैं पत्नी को छोड़ तो रहा नहीं,उसे तन –मन –धन का सारा सुख व सम्मान तो दूंगा ही |
और मुझे ....सारा उच्छिष्ट ...|
ऐसा क्यों सोचती हो ,तुम्हें भी प्यार मिलेगा ,पर समाज के सामने नहीं |मेरी कुछ सामाजिक –पारिवारिक मर्यादाएं हैं|
-आप ऐसे प्रेम के सहारे अपने जीवन में रंग भर सकते हैं ,पर मैं नहीं |
आखिर क्यों नहीं?तुम मुझसे प्रेम क्यों नहीं कर सकती ?
-वह इसलिए कि आपके जीवन में मेरे लिए बस थोड़ा-सा स्पेस है |आप अनगिनत रिश्तों को जीते हुए पार्ट-टाईम में प्रेम कर सकते हैं |इससे आपका व्यवस्थित सामाजिक व पारिवारिक जीवन सामान्य गति से चलता रह सकता है |शायद आप मुझसे जो चाहते हैं ,वह आपको मिल जाए,पर मेरी चाहत आप पूरी नहीं कर सकते |
तुम्हारी चाहत जान सकता हूँ क्या ?
-मैं ज्यादा नहीं,पर अपने पुरूष का सम्पूर्ण व सर्वकालिक प्रेम चाहती हूँ |कुछ क्षणों के मिलन के बाद प्रेमी से अलग हो जाना,उसकी याद में तडपते रहना |अपनी जरूरतों,चाहतों के लिए दूसरों का मुँह अगोरना |सर्वस्व समर्पण के बाद भी साधिकार उसकी बांह पकडकर समाज में न चल सकना मुझे पसंद नहीं आ सकता |
ऐसा पुरूष तुम्हें नहीं मिलेगा |मुझे तो लगता है जीवन में जो कुछ सहजता से मिल रहा हो,उसे अपना लेने में ही सुख है |तुम सुंदर हो,मेधावी भी,इसलिए मैं तुमसे आकर्षित हूँ,वरना मेरे पास तुमसे भी अधिक सुंदर पत्नी है और शहर में स्त्रियों की कमी नहीं |मैं तो दयावश तुम्हारे सूने जीवन में खुशी के कुछ फूल खिलाना चाहता था |
वह हतप्रभ थी |क्या इस समाज में अकेली स्त्री इतनी दयनीय व बेचारी समझी जाती है कि उसकी योग्यता,आत्मनिर्भरता को कोई मोल नहीं रह जाता ?अगर प्रेम दया वश ही मिलना है,तो ..थू है ऐसे प्रेम पर | कोई जरूरी तो नहीं पुरूष और उसका प्रेम |
किस सोच में डूब गयी?कुछ मीठी बात करो ना ,मुझे नींद नहीं आ रही |
-पर मुझे बहुत नींद आ रही है |
कहते हुए उसने फोन काट दिया |सच ही उसे सुकून की नींद आ गयी |

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