Saturday 1 October 2011

काश ऐसा होता

आज फिर अखबार में खबर है कि 'एक माँ ऐसी भी...|' कारण -दो बच्चे लावारिस मिले हैं |इधर लगातार' डायन माँ ने ...,हवस की मारी माँ ने ....अपने बच्चे को मरने के लिए छोड़ दिया |' ऐसी खबरें पढ़ने को मिलीं|ये खबरें  मुझे विचलित करती हैं |क्या आज भी स्त्री उतनी ही मजबूर ,कमजोर और बेवकूफ है ,जितनी पहले हुआ करती थीं ?कुंती ने कर्ण,विधवा ब्राह्मणी ने कबीर और ऐसी ही अनगिनत माओं ने अपनी संतान का परित्याग क्या खुशी से किया होगा ?क्या संतान उन्होंने खुद गढ़ कर अपनी कोख में डाल लिया होगा ?क्या पूरे नौ महीने अपनी कोख में रखते और असीम पीड़ा सहकर जन्म देते समय वे डायन ,कठकरेज ,निर्मम ना थीं ?फिर क्यों वे अपनी संतान को त्यागने पर मजबूर हुईं ?कहाँ था उस समय वह पुरूष ,जिसने स्त्री की कोख को हरा किया था? क्यों नहीं समाज ऐसे बच्चों को सम्मानजनक स्थान देता है ?क्यों नहीं ऐसी स्त्री को चरित्रवान समझा जाता है ?उसे मनुष्य की तरह जीने दिया जाता है ?
आज जब कि परिवार नियोजन के साधन आसानी से उपलब्ध हैं ,क्योंकर स्त्री गर्भवती हुई ?निश्चित रूप से वह प्रेम के विश्वास में मारी गयी होगी ,या फिर इस काबिल ना होगी कि बच्चे को पाल सके |ऐसी स्त्रियों को गा ली देने वालों को अपने गिरेवान में भी झाँक कर देखना चाहिए |भरे पेट अय्याशी करने वाले क्या जाने अभाव की पीड़ा ?क्या जाने भूख ?स्त्री होने की लाचारी ?चलिए मान लिया देह की भूख के कारण स्त्री ने संबंध बनाए थे ,जिसका परिणाम गर्भ हुआ |तो क्या यह भूख सिर्फ उसे लगी?बड़े-बड़े महात्मा ,देवता काम के वशीभूत हुए |स्त्री भोली होगी ,वरना समझदार  स्त्री फंसने वाला काम भला क्यों करती ?मेरे शहर में एक गंदी सी पगली है ,वह अब तक दो बार माँ बन चुकी |संभ्रांतों के इस शहर में कोई तो उसके बच्चों का पिता होगा|काश ,स्त्री के पास उपजाऊ कोख ना होती ,तो जाने कितने महापुरुषों का पाप आकार न लेता और स्त्री को गरियाने का मौका समाज के हाथ से निकल जाता | 

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