Wednesday 5 October 2011

'पुत्र बिना गति नहीं' की मानसिकता



पिछले वर्ष जब भक्त-जन मिट्टी की माँ दुर्गा की आरती कर रहे थे,एक बेटा अपनी माँ को जिन्दा जला रहा था| भीख मांगती बूढ़ी औरतों से पूछो तो बेटों के अत्याचार की अनगिनत कहानियां सुनने को मिल जाती हैं|बचपन में माँ से भी एक कहानी सुनी थी,जिसमें बेटे ने प्रेमिका को खुश करने के लिए माँ का कलेजा ही निकाल लिया था |परशुराम ने भी तो पिता के कहने पर अपनी माँ का सिर काट लिया था| रवना [सुप्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट की विदुषी पत्नी] की जीभ भी उसके पुत्र ने पिता की आज्ञा से काट ली थी,जिससे उसकी मौत हो गयी | ‘ना आना इस देश लाडो’ की अम्मा जी भी बौरा गयी हैं |जबर्दस्त सदमा लगा है उन्हें |जिस बेटे पर उन्हें नाज था ,उसी ने षड्यंत्र कर ना केवल उनकी सत्ता हथिया ली,बल्कि उन्हें घसीट कर घर से बाहर कर दिया|यह वही अम्मा जी हैं,जिन्होंने अपने गांव वीरपुर में कन्या जन्म का निषेध कर रखा था |कन्याएं जन्म लेते ही मार दी जाती थीं |यह नियम उन्होंने अपने घर पर भी लागू की थीं |अपनी बेटी के परित्याग व पोतियों को मृत्युदंड देने में भी वे एक पल की देरी नहीं करतीं |वे स्त्री विरोध में पूरी तरह से पुरूष मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती थीं |समय के साथ वे थोड़ा बदलती हैं,पर उनके रोपे विष-बीज अब मजबूत वृक्ष बन चुके हैं |अब वे भी उसी शिकंजे में हैं |इस आपातकाल में उनके साथ वे ही स्त्रियाँ हैं,जिनपर उन्होंने अनगिनत अत्याचार किए थे |दो बहुएँ,पोते की गर्भवती बहू,दो पोतियाँ,एक बच्ची के साथ सिर्फ दो पुरुष हैं –एक पालित पुत्र, दूसरा पोता |इस कुनबे को उनकी बहुत चिंता है |वे उन्हें ठीक करना चाहते हैं |अम्मा जी का कमजोर रूप वे सहन नहीं कर पा रहे हैं |बहू सलाह देती है कि वे वर्षों पहले छोड़ चुके वीरपुर चलें ,तो शायद अम्माजी इस सदमे से बाहर आ जाएँ |
पर वीरपुर बदल चुका है |अम्माजी की गद्दी पर एक ऐसा दबंग आदमी काबिज हो चुका है,जो घोर पतित है |सारे बुरे कामों के साथ वह लड़कियों की खरीद-फरोख्त करता है |उसके गुण्डे दूसरे गांवों से लड़कियों को अगवा करके लाते हैं,जिनकी वीरपुर में बोली लगती है|वीरपुर में लड़कियों के जन्म न लेने देने की परम्परा के कारण लड़कियाँ नहीं हैं,इसलिए वीरपुर के मर्द अपना घर बसाने के लिए लड़कियाँ खरीदते हैं |दूसरे गांव के लोग वीरपुर में लड़की ब्याहना नहीं चाहते,क्योंकि वहाँ औरत सिर्फ मादा है |ऐसे वातावरण में पांच जवान स्त्रियों के साथ अम्माजी का वीरपुर आना [वह भी बौरही रूप में]समस्याओं को जन्म दे रहा है |गांव के मर्द अम्माजी का शासन भूल चुके हैं,उन्हें नए शासक का समर्थन मिला हुआ है |अम्माजी के घर की पाँचों स्त्रियाँ की इज्जत खतरे में है|गांव के मंदिर का पुजारी उन्हें मंदिर में छिपाए हुए है ,पर कब तक !उनके बाहर निकलने का रास्ता भी बंद है और राशन-पानी भी |कब तक वे हथियार नहीं डालेंगी ?निश्चित रूप से धारावाहिक माँ दुर्गा का चमत्कार दिखाएगा,जिससे अम्माजी फिर से शक्तिरूपा होकर अपने परिवार की रक्षा करेंगी |
पर मैं सिर्फ उस भविष्य की ओर संकेत करना चाहती हूँ,जो निरंतर तेजी से घटते कन्या-अनुपात के कारण होने की प्रतीक्षा में है |यदि इसी तरह कन्या-भ्रूणों को मारा जाता रहा,तो क्या कल यह देश वीरपुर में तब्दील नहीं हो जाएगा?निश्चित रूप से जब पुरूषों को स्त्री उपलब्ध नहीं होगा तो जो शक्तिशाली व संपन्न होगा,वही स्त्री को प्राप्त करेगा |ज्यादातर परिवारों में कई पुरुष एक स्त्री के साथ रहने को विवश होंगे |एक अराजक स्थिति होगी |स्त्री मात्र मादा होगी,वस्तु होगी |स्त्री के लिए युद्ध होंगे ,छीना-झपटी,बलात्कार में बढ़ोत्तरी होगी |समाज से नैतिकता पूरी तरह विलुप्त हो लाएगी |अभी समय है,हम चेत सकते हैं,संभल सकते हैं |पर कहाँ खुल रही है हमारीआँखें?प्रसिद्ध नर्सिंगहोमों के करीबी नालों में असंख्य कन्या-अस्थियों का मिलना क्या सिद्ध करता है ?कचरे,जंगल व वियावनों में [मरने के लिए फेंकी गयी ]बच्चियों को देखकर यही लगता है कि आज भी बेटियों से लोगों को कितनी नफरत है|  ५ अक्टूबर दुर्गा नौमी- इस दिन अधिकतर हिन्दू परिवारों में नौ कन्याओं की पूजा-अर्चना की परम्परा है]गोरखपुरमें एक नर्सिंगहोम के पास से पांच माह की बच्ची का शव मिला है |बच्ची का शव अखबार में लिपटा हुआ था |ऐसी ना जाने कितनी बच्चियाँ इस तिथि को मिली होंगी |
समाज की मानसिकता इक्कीसवीं सदी में भी बेटियों के प्रति बदली नहीं है |वह बोझ है,पराया धन है |उसके पैदा होने से धरती धँस जाती है |आज भी स्त्रियाँ[विशेषकर अशिक्षित]पुत्र-मोह से ग्रस्त हैं | पुत्र के लिए कई व्रत रखती हैं[बेटी के लिए एक भी नहीं]| बेटे को दूध-मलाई खिलाती हैं,बेटी को रूखी-सूखी [धारणा कि बेटियां तो रूखी-सूखी खाकर भी ताड़ की तरह बढ़ जाती ] |बेटे का कैरियर महत्वपूर्ण मानती हैं,इसलिए अच्छे से अच्छा स्कूल,उच्च शिक्षा व खर्चीले संसाधन बेटे के लिए जुटाती हैं |बेटी के लिए तो बस शादी जरूरी है,इसलिए उसके लिए दहेज जुटाना ही पर्याप्त मानती हैं |मान्यता है कि लड़की तो जैसे चाहे,पढ़ ही लेगी |फिर उसकी शिक्षा भी तो बस उसे विवाह लायक बनाने के लिए है,कैरियर के लिए नहीं |कल पति नहीं चाहेगा,तो सब कुछ छोडना पड़ेगा,इसलिए ज्यादा खर्चा करना फिजूल है [हालाँकि शिक्षित व शहरी स्त्रियों की सोच अब काफी बदल चुकी है] मेरा एक शिक्षित मित्र चार बेटियों का पिता बनकर परेशान है|माँ की पोते की जिद ने उसे मजबूर कर दिया था |माँ तो रही नहीं और अब वह बच्चियों की शिक्षा और विवाह के खर्चे के बारे में सोच-सोचकर बीमार रहने लगा है |मैंने उसे बच्चियों की शादी की चिंता छोड़कर उन्हें अच्छी तरह शिक्षित करने का सुझाव दिया है,पर महंगी होती जा रही शिक्षा को देखकर मुझे भी चिंता हो रही है |आज के कठिन व महंगे समय में जहाँ किसी एक बच्चे की परवरिश ही मुश्किल है,वहाँ बेटे की प्रतीक्षा में बेटियों की लाईन लगाना या फिर भ्रूण का लिंग पता कर उसे नष्ट करवा देना या पैदा हो जाने के बाद मरने के लिए छोड़ देना या फिर बेच देना कहाँ की बुद्धिमानी है ?पर यह घटित हो रहा है ,जो चिंता का विषय है |समाज की मानसिकता जब तक नहीं बदलेगी ,लिंग-भेद जब तक नहीं मिटेगा ,तब तक इस समस्यां क समाधान नहीं हो सकेगा| यह प्रश्न उठ सकता है कि जब इतनी कन्याएँ पैदा हो रही हैं कि उन्हें मारने की जरूरत पड़ रही है,तो फिर बेटों के सापेक्ष बेटियों का अनुपात घट कैसे रहा है?पर यह हो रहा है ,क्योंकि ज्यादातर को बेटियां नहीं चाहिए ||कुछ लोगों का यह भी कहना है कि गरीबी इसका मुख्य कारण है |बढ़ती जाती दहेज की मांग के कारण माता-पिता बेटियों के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं |उत्तर –प्रदेश की मुख्य मंत्री सुश्री मायावती जी ने इसी कारण से १५ जनवरी २००९ से महामाया गरीब बालिका आशीर्वाद योजना शुरू की ,जिसमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों में बालिका के जन्म होने पर एक मुश्त धनराशि १८ वर्ष के लिए राष्ट्रीय बैंक में सावधि जमा कर दी जाती है |१८ वर्ष की आयु तक बालिका के अविवाहित रहने की स्थिति में उक्त जमा धनराशि से लगभग एक लाख रूपये की धनराशि उपलब्ध होगी |अब तक ४२५७१५ बालिकाएं इस योजना से लाभान्वित हो चुकी हैं |[यह सरकारी आकड़ा है,इसका लाभ कितनों को,कितना और कैसे मिलता है यह अलग शोध का विषय है]
निश्चित रूप से समाज की मानसिकता बदले बिना बेटियों को सम्मान नहीं मिलेगा ,न उनकी हत्याएं रूकेंगी |शिक्षा का प्रसार,जागरण-अभियान,मीडिया के प्रयास और सरकारी कोशिशें,सख्त कानून सबकी जरूरत पड़ेगी |मीडिया को लड़कियों के प्रति होने वाली हिंसा,यौन-शोषण,बलात्कार की खबरों के साथ उन खबरों को भी छापने में दिलचस्पी दिखानी चाहिए,जिसमें बेटियों ने कीर्तिमान बनाएँ हैं|उसे उनकी उपलब्धियों,सफलताओं का अधिकतम प्रचार-प्रसार करना चाहिए |ऐसा करने का सकरात्मक प्रभाव पड़ेगा |लोग बेटियों की सुरक्षा के लिए चिंतित नहीं रहेंगे |बेटियां भी आत्मविश्वास से भरेंगी और आत्मनिर्भर बनेंगी |जल्द ही वह दिन आने वाला है ,जब बेटी के जन्म का स्वागत होगा और लिंग-भेद हमेशा के लिए समाज से मिट जाएगा |३अक्तूबर को पुरूषों के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली भारतीय सेना में पहली बार एक महिला जवान को शामिल किया गया है |अब तक महिलाओं को सशस्त्र बलों में सिर्फ गैर लड़ाकू इकाइयों में अधिकारी के तौर पर शामिल किए जाने की अनुमति थी ,लेकिन दो बचों की माँ ,३५ वर्षीया सैपर शांति तिग्गा ने शारीरिक परीक्षण में अपने पुरूष समकक्षों को पीछे छोड़ दिया |उसे ९६९ रेलवे इंजीनियर रेजिमेंट आफ टेरिटोरियल आर्मी में शामिल किया गया है |कहने का तात्पर्य यह कि धीरे-धीरे बेटियां हर क्षेत्र पर काबिज हो रही हैं |वे न कमजोर हैं,न अक्षम,न पुरूषों से किसी बात में कम, इसलिए समाज को उनके प्रति अपनी सोच बदल देनी चाहिए |’ना आना लाडो’की अम्मा जी भी अपनी सोच बदलने को वाध्य हो रही हैं सरकार भी ‘बेटी बचाओ’अभियान को युद्ध-स्तर पर लागू करने के लिए कृतसंकल्प है,तो देर किस बात की है |आइए हम सब भी इस पवित्र यज्ञ में शामिल हों और ‘पुत्र बिना गति नहीं’की मानसिकता को बदलें |

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