Saturday 22 October 2011

सैंया भए कोतवाल अब डर काहें का


किसी पति-मुग्धा की यह गर्वोक्ति एक समय के कोतवालों की साफ़-सुथरी छवि को प्रस्तुत करती है |यह कथन मुहावरा बन गया |मतलब साफ़ था कि कोतवाल के होते स्त्री को कोई खतरा नहीं था और पति कोतवाल हो जाए तो बिलकुल ही नहीं |वह स्त्री निश्चिन्त होकर रात-बिरात मनपसंद कपड़ों और भरपूर जेवर पहन कर भी बाहर निकल सकती थी |उसकी इज्जत और जेवर दोनों की सुरक्षा की गारंटी मिल जाती थी [वैसे भी उस समय के रजनीचरों में चोर-डाकू ही रहे होंगे,किडनेपर्स और रेपिस्ट नहीं]शायद कोतवाल उन दिनों रात को जगकर जनता के जान-माल की सुरक्षा करते रहे होंगे और उस समय के चोर-उचक्के,डाकू उनसे भय भी खाते होंगे |आज समय बदल गया है |रजनीचरों में चोर-उच्चके,डाकू-स्मगलर के साथ रेपिस्ट,किडनेपर्स,हत्यारे और बाईकर्स भी शामिल हो गए हैं,तो निश्चित रूप से कोतवालों का काम बढ़ गया है |कुछ कोतवाल तो उनके मौसेरे भाई की भूमिका में आ गये हैं,तो कुछ आराम से रात को सोते रहते हैं |वैसे भी रात को जागना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता[वैसे वे तो दिन में भी सोते ही रहते हैं तभी तो अपराधी दिन में भी अपराध करने लगा है,रात का इंतजार कौन करे? कोतवाल साहब दिन में भी अपराध हो चुकने के बाद ही पहुँचते हैं |समय से पहुंच कर अपनी जान जोखिम में क्यों डालें आखिर उनके भी बाल-बच्चे हैं |
कहा जाता है कि किसी शहर का रात भर जागना उसकी जिंदादिली को दर्शाता है |कोतवाल साहब को यह जिंदादिली पसंद नहीं |नालायक ना खुद सोते हैं,न सोने देते हैं |ऊपर से शहर की स्त्रियाँ भी कम नहीं |रात-बिरात भी निकलती हैं,कपड़े भी ढंग से नहीं पहनती हैं और जब उनके साथ कुछ बुरा हो जाता है तो कोतवालों को कोसती हैं,यह तो बेइंसाफी है |इधर राजधानी में स्त्री-अपराध कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं,इसलिए कोतवाल साहब ने सलाह दी है कि –महिलाऐं रात –बिरात घर से बाहर ना निकलें |हो सकता है उनकी अगली सलाह कपड़ों के बारे में हो –कि वे मार्डन कपड़े ना पहनें |जेवर पर तो वे पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं |भई गुण्डे-मवालियों को तो नसीहत दी नहीं जा सकती,वे तो नालायक हैं ही |स्त्रियाँ तो समझदार हैं |फिर दुर्घटना से सावधानी भली |उक्ति भी तो है –‘सावधानी हटी दुर्घटना घटी’|अब आजादी के नाम पर ‘आ बैल मुझे मार’को आजमाना स्त्री के हित में तो नहीं ही है |कोतवाल साहब अपना नैतिक कर्तव्य निभा रहे हैं और स्त्रियाँ हैं कि इसे अस्मिता का प्रश्न बना रही हैं |अब इनसे कड़ाई से कुछ कहना भी मुश्किल है |अब भला क्या बुरा कह दिया था कनाडा के उस पुलिस अधिकारी ने,यही ना कि ‘लड़कियों को बलात्कार से बचने के लिए स्लट जैसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए|’लीजिए भई फिर तो पूरी दुनिया में ही स्लट-वाक् शुरू हो गया |कोतवाल साहब तो चाहते हैं कि स्त्रियाँ घर में रहें |चूल्हा और बच्चे संभालें |बाहर निकलें,तो पूरे कपड़ों में निकलें |कोशिश करें कि सिर भी ढंका हो|यही तो कुलीन स्त्रियों का धर्म है |उनके इस कदम से कोतवालों का काम कितना आसान हो जाएगा |
अब अपराधी पहले की तरह कोतवाल साहब के दबदबे को नहीं मानते,उनसे भय नहीं खाते|कारण यह भी हो सकता है कि पहले के कोतवाल अपराधियों से नहीं खाते थे,इसलिए उनके हित में नहीं गाते थे |आज स्थिति उलट है |आज तो कोतवाल खुद ही राह चलती स्त्री को ऐसे घूरते हैं कि वह शर्म से पानी-पानी हो जाती है |अपने प्रति हुए अपराध की शिकायत करने स्त्री थाने जाए,तो ऐसे सवाल-जबाब कि भागते ही बने |कई बार तो बलात्कार की शिकार का ही बलात्कार कर दिया जाता है और कई बार अपराध छिपाने के लिए हत्या भी |इधर लगातार कई घटनाएँ ऐसी घटी हैं कि जिसने प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है कि कोतवाल रक्षक की भूमिका में है कि भक्षक की |
यह अच्छा है कि शिकारी का तो कोतवाल कुछ ना बिगाड़ पाए,बस शिकार को ही नसीहतें देते रहे,वह भी सुरक्षा के नाम पर |यह कैसा गणतन्त्र है,जहाँ स्त्री ही हिंसा का शिकार हो रही है और उसको ही सजा दी जा रही है?ढेर सारी पाबंदियां और जकड़न सिर्फ इसलिए कि स्त्री अपनी सुरक्षा खुद नहीं कर सकती |होना तो यह चाहिए कि कोतवाल शोहदों को गिरफ्तार करें,ताकि दूसरे ऐसा करने से डरें,पर नहीं स्त्री को नसीहत देना ज्यादा आसान है |इस तरह से तो वे असामाजिक तत्वों को सन्देश दे रहे हैं कि स्त्रियाँ ही दोषी हैं |कोतवाल को असामाजिक तत्वों के खिलाफ नियम बनाकर,सुनसान सड़कों पर सुरक्षा गार्डों की व्यवस्था कर,स्त्री की शिकायत को तत्काल दर्ज करके उस पर कार्रवाई कर अपनी बिगड़ रही छवि को सुधारना चाहिए |

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